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तिब्बत की एक प्रख्यात गुम्बा
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मेरे पैरों में गिर पड़ा और मुझसे बीचबचाव करने के लिए प्रार्थना को ।
मैंने दोनों दलों को समझा-बुझाकर किसी तरह शान्त किया। झगड़ा ख़त्म हुआ । साथ ही साथ इस बात का भी पता चल गया कि कितनी जल्दी ये लोग मरने-मारने पर तुल जाते हैं। दूसरे दिन मैंने सराय के दरवाजे पर देखा, कई डाकुओं के ताज े कटे हुए सर लटक रहे थे। डाकुओं की इस देश में कमी नहीं है ।
जिस सड़क से हमें जाना था उस पर लड़ती हुई सेनाओं का अधिकार था । मैंने सोचा शियान - की सीधी सड़क पकड़ने के बजाय उस तरफ़ से कई कोस की दूरी पर हटकर बसे हुए टङ्गशाऊ नगर से जाना उचित होगा ।
जिस रोज़ मैं टङ्गशाऊ पहुँचो, उसके दूसरे हो दिन नगर को शत्रुओं ने घेर लिया। मैंने अपनी आँखों से सैनिकों को सीढ़ी लगा-लगाकर शहरपनाह की दीवालों पर चढ़ते देखा, जिनके ऊपर बड़े-बड़े पत्थर नगरनिवासी ऊपर से गिरा रहे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पुरानी तस्वीरों में दिखलाये गये शहर के घेरों और लड़ती हुई फ़ौजों को देख रही थी ।
शेन्शी के गवर्नर ने मुझे अपने यहाँ चाय के लिए बुलाया । मैं गई भी। इस चाय पार्टी की याद मुझे सदैव बनी रहेगी । पोठ से बन्दूकें बाँधे हुए और कारतूसों से लैस वीर योद्धा किसी क्षण हो सकनेवाले हमले के लिए तैयार, चाय-पानो का प्रबन्ध कर रहे थे। उनके चेहरों पर आत्मविश्वास था और होठों पर हँसी । बड़े इतमीनान के साथ सभी लोग अपने-अपने काम में लगे हुए थे । गवर्नर और अन्य बातचीत करनेवाले भद्र पुरुष बड़े शिष्टाचार और आदर के साथ अपने अतिथियों से हँस-हँसकर बातें कर रहे
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