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प्राचीन तिब्बत देश में पैर रखने के लिए चीन देश की सारी उत्तरी-पश्चिमी सीमा तय करनी पड़ी। __ मैंने एक काफिले का साथ पकड़ा, जिसमें अपने-अपने सेवकों के साथ-साथ दो धनी लामाओं के अतिरिक्त सुदूर काँसू प्रान्त का एक सौदागर और कुछ भिक्षु और साधारण गृहस्थ आदि थे। ये लोग सब के सब आम्दो की पार जा रहे थे।
यात्रा बड़ी मजदार रही। अपने मनोरजन के लिए सफर की घटनाओं और साथियों के विचित्र स्वभाव से मुझे काफी मसाला मिला। ___ हम लोग दो-एक दिन के लिए एक सराय में ठहर गये थे। लोगों को पता चला कि हमारे काफिले में कुछ व्यापारी भी थे। जरूरी चीजों का मोल लेने के लिए कई आदमी बाहर से सराय के भीतर आये।
लेन-देन के सिलसिले में बड़ी देर तक ठकठक होती रही। किसी बात पर सौदागरों के सरदार से और एक आदमी से कुछ चल गई। सरदार बड़ा बिगड़े-दिल मालूम पड़ता था और वह श्रादमी देखने में तो बड़ा सोधा सा लगता था लेकिन झगड़ालू एक नम्बर का था। दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़ गये और हाथापाई तक नौबत आ पहुँची।
सरदार एक बड़ा ग्रांडोल चीना नौजवान था। उसके सामने वह दूसरा आदमी केवल बोना सा लगता था। __ सराय के मालिक ने देखा, बात बढ़ती जाती है। उसने विवश होकर पास ही में रहनेवाले कुछ सिपाहियों को बुला भेजा। उधर से सरदार के लड़ाकू साथी और नौकर भी बराबरी में आ गये। तब नहीं बना था तो अब बना। जल्दी ही सरायवाले को अपनी गलती मालूम हो गई। बेचारा दौड़ा-दौड़ा आकर
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