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तीसरा अध्याय
तिब्बत की एक प्रख्यात गुम्बा
एक बार फिर हिमालय को पार करके मैं हिन्दुस्तान के रास्ते पर आ खड़ी हुई।
इस विचित्र लुभावने देश में कुछ दिन तक ऐसा सुखमय जीवन व्यतीत कर लेने के बाद फिर इसे छोड़ते हुए दुःख हुआ । तिब्बत का यह प्रवेशद्वार बहुत रहस्यमय जरूर रहा, लेकिन मैं जानती थी कि कितनी जानने योग्य बातें छूटी जा रही थीं, कितनी देखने लायक चीज देखने को नहीं मिलीं ।... लेकिन मुझे 'जादू का देश' छोड़ना ही पड़ा। मैं ब्रह्मा गई । वहाँ सागेन की पहाड़ियों में कुछ दिन तक कामताङ बौद्धों के साथ बनी रही। फिर मैं जापान गई और वहाँ जन मतावलम्बियों के तो फ़ो कू-जी मठ के शान्तिपूर्ण वातावरण में कुछ दिनों के लिए शान्ति मिली ।
इसके बाद कोरिया गई । वहाँ घने जंगलों में छिपी हुई पानया-अन की गुम्बा ने मेरा स्वागत किया ।
फिर मैं पेकिङ्ग पहुँची । पेलिंग-स्से में कुछ दिन बीते । यह बिहार कन्पय शियस के शानदार मन्दिर के पास ही है । यहाँ से फिर तिब्बतने मुझे अपनी ओर खींचा।
बरसे से मैं दूर देश में टिकी हुई कम्बम की गुम्बा का स्वप्न देखती रही थी। मुझे तो कभी आशा नहीं थी कि वहाँ पहुँच सकूँगी । पर फिर भी यात्रा आरम्भ कर दी। मुझे तिब्बत क
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