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प्राचीन तिब्बत
जितने दिनों मैं शिगात्जे में रही, बड़े आनन्द के दिन थे । तरहतरह के लोगों से मेरी भेट - मुलाक़ात होती थी । नित्य नये प्रकार के तमाशे देखने में आते थे ।
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आखिरकार वह दिन भी आया जब कि मुझे ताशिल्हुन्पो छोड़ना पड़ा। कुछ अफसोस और एक ठण्ढी साँस लेकर अपनी पुस्तकों और उपहारों के साथ मैं शिगात्जे, नगर से बाहर हुई ।
नारथाऽङ में तिब्बत देश का सबसे बड़ा छापाखाना था । इसे भी मैंने देखा। इसी बीच में एक खास घटना घटी।
गङ्गटोक में जो अँगरेज रेजीडेंट रहता था उसने पहले ही एक पत्र मुझे इस आशय का भेजा था कि मैं तिब्बत देश की सोमा जल्दी से जल्दी छोड़ दूँ । इसी आशय का दूसरा पत्र जब मेरे पास पहुँचा तो मैं पहले से ही तिब्बत छोड़कर सुदूर पूर्व के लिए हिन्दुस्तान को रवाना हो चुकी थी ।
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