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पोदाइक लाच ही रही थी किमलेन आजकलहर तक आसानाने का
लामा लोगों का आतिथ्य पतझड़ का समय आ पहुँचा, पहाड़ी रास्ते बर्फ से भर गये और तम्बू के भीतर रातें कटनी कठिन हो गई। मैंने पहाड़ों को शोघ्र छोड़ दिया।
थाङगच में जिस बंगले में मैं रहती थी, वह समुद्र की सतह से १२००० फीट ऊँचे--तिब्बत की सीमा से १४ मोल के फासिले परएक सुन्दर निजन प्रदेश में जंगलों से घिरा हुआ था। मुझे यह स्थान बहुत ही पसन्द आया और कुछ दिनों के लिए गङ्गटोक या पोदाऽङ् लौटने का विचार मैंने स्थगित कर दिया। ___मैं सोच ही रही थी कि जाड़ों में कहाँ रहना ठीक होगा कि पता लगा कि लाछेन का गोमछेन आजकल अपने आश्रम में ही था और अपने बंगले से सबेरे चलकर दुपहर तक आसानी से मैं वहाँ पहुँच सकती थी। मैंने तुरन्त उसके पास तक जाने का निश्चय किया। उसके समीप रहकर बहुत सी बातों का पता लगाना था और बहुत सी बातें सीखनी थी। लेकिन अपने घोड़े को मैंने पहले से ही अलग कर दिया था और चोटन नाइमा के बाद से बराबर याक पर सफर कर रही थी। याक की सवारी में लगाम का काम नहीं पड़ता है। दोनों हाथ खाली रहते हैं। मेरी वही श्रादत पड़ी थी और जब मैं बँगले के मालिक के घोड़े पर चढ़ी तो भी अक्ल न आई। जानवर अच्छा था। जैसे ही वह अपनी जगह से तेजी के साथ छूटा, वैसे ही मैं धड़ाम से नीचे श्रा गिरी। भाग्यवश मेरे नीचे घास थी और चोट कुछ कम आई। बँगले का मालिक डरता डरता मेरे पास आया और बोला-"आप विश्वास कीजिए, इसके पहले कभी इस घोड़े ने ऐसा नहीं किया है। यह तो बहुत सीधा है। मुझे इसके ऊपर पूरा भरोसा था। परसों से मैं इसे अपने काम में ला रहा हूँ। देखिए, मैं खुद आपको चढ़कर दिखाता हूँ।"
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