________________
३७
लामा लोगों का आतिथ्य रिश की थी। और अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए यह उपहार वह मुझे भेंट दे गया था।
सिद्व्यांग तुल्कु बराबर मेरे पहाड़ों पर चढ़ने के शौक की हंसी उड़ाया करता था। किनचिनचिंगा की चोटी के नीचे हम कुछ दिन के लिए रुके, फिर महाराजा ने अपने साथियों के साथ गङ्गटोक लौट जाने का विचार किया। मेरा उसका साथ छूट गया। मुझे उसकी याद अब तक आती है। मैं उसे अब भी अपने सामने देखती हूँ। इस बार वह प्रारब्योपन्यास के किसी 'जिन' के लिबास में नहीं, बल्कि योरपीय फैशन के मुताबिक हैट पैंट में था।
दूर--पहाड़ी के पीछे आँखों से ओमल होने के पहले वह मेरी ओर मुड़ा और हैट हाथ में ऊंचा उठाकर वहीं से चिल्लाया, "ज्यादह समय तक बाहर न रहना। जल्दी वापस लौटना।"
इसके बाद फिर मैंने उसे कभी नहीं देखा। कुछ महीने बाद ही जब मैं लाछेन में रुकी थी, उसकी अचानक मृत्यु हो गई। __कुछ दिन पहले ही लामा लोगों ने उसकी जन्मपत्री देखी थी और बताया भी था कि अमुक माह में उसके ग्रह अच्छे नहीं थे और उसकी आयु के समाप्त होने की सम्भावना थी। इन लोगों ने कुछ जप-तप आदि के करने की भी सलाह दी थी, लेकिन लामा तुल्कु ने मना कर दिया था। इन सब बातों में उसका थोड़ा भी विश्वास नहीं था। अवश्य ही लोगों ने उसे हठीला और अधार्मिक समझा होगा।
मैं बेफिक्र होकर कुछ दिन तो जरूर घूमने-वामने में बिता देतो, लेकिन चोर्टन नाइमा जाने की मेरी बड़ी इच्छा हो रही थी। गङ्गटोक में ही लोगों ने मुझे बतलाया था कि "सिक्कम में आपने
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com