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प्राचीन तिब्बत थीं। वे अपने चारों ओर ऐसे सहमे हुए देखते थे जैसे दो जङ्गलो जानवर जङ्गल से मँगवाकर पिंजड़े में बन्द कर दिये गये हों।
लामा तुल्कु ने दो बड़े-बड़े झाबे मैंगवाये और उन्हें चाय, मक्खन, जौ के आटे और चावल आदि वस्तुओं से भरवा दिया । उसने संन्यासियों को बतलाया कि उसका इरादा यह सब का सब उन्हें दे देने का था। लेकिन फिर भी वे दोनों कुछ न बाले।
गाँव के लोगों ने बतलाया कि जब से ये यहाँ टिके हैं, तभी से शायद इन्होंने मौन रहने की प्रतिज्ञा कर रक्खी है। ___ महाराजा फिर भी महाराजा थे और अपने देश के स्वामी। उन्होंने कहा कि तब कम से कम ये हमार सामने झुककर सलाम ही करें।
लेकिन वे दोनों संन्यासी बड़े हठीले साबित हुए। मैंने देखा, बात बिगड़ा चाहती है और बेचारों को बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा। मैंने महाराजा से प्रार्थना की कि इन दोनों को छोड़ दिया जाय।
पहले तो लामा तुल्कु राजी न हुआ। पर मेरे आग्रह करने पर उसने अन्त में आज्ञा दी-दरवाजे खोलकर इन जगली जानवरों को बाहर निकाल दो।"
जैसे ही संन्यासियों ने देखा कि भागने का मौका है, वे उन झाबों पर टूट पड़े। एक ने शीघ्रता के साथ अपनो गुदड़ी में से न जाने क्या वस्तु निकालकर उसे मेरे बालों में खोंस दिया और तब वे दोनों खरहों की तरह भाग गये।
मुझे अपने बालों में एक छोटी सी तावोज़ मिली जिसे मैंने और लोगों को भी दिखलाया। शायद सीधा-सादा संन्यासी समझ गया था कि मैंने उसके और उसके साथी के छुटकारे के लिए सिफा
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