________________
प्राचीन तिब्बत ___एक और दिन, बात-बात में, उसने कहा-"मैं देखता हूँ 'सुगम मार्ग' की ओर स्पष्ट रूप से आपका मुकाव है। हमारे इस मार्ग की बारीक से बारीक बातों के समझने में आपको देरी न लगेगी। आप तिब्बत अवश्य जाइए। एक से एक बढ़कर योग्य गुरु इस मन्त्र की दीक्षा देने के लिए वहाँ आपको मिलेंगे।"
इस पर मैंने पूछा-"लेकिन मेरा तिब्बत जाना हो कैसे सकता है ? विदेशी लोगों को तिब्बत देश में घसने की मनाही जो है।"
उसने बिना एक क्षण रुके हुए कहा-"तिब्बत में घुसने का रास्ता कई तरफ से है। सभी विद्वान् लामा कुछ ल्हासा और शिगाज में आकर इकट्ठ थोड़े ही हो गये हैं। पूर्वी तिब्बत में तो बल्कि और कुशल शिक्षक मिल सकते हैं।" ___चीन देश की ओर से तिब्बत में घुसने का विचार मुझे कभी सूझा ही न था और न गोमछेन का इशारा ही मेरी समझ में आया। कदाचित् ऐसा अभी विधाता को मञ्जूर नहीं था।
दूसरा गोमछेन दालिंग गोमछेन भी साक्योंग गोमछेन की भाँति जहाँ से आया था, उसी जगह के नाम से पुकारा जाता था। वह स्वभाव का कुछ घमण्डी था और बातचीत बड़ी ऐंठ के साथ करता था।
तिब्बत में बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे जो शुद्ध शाकाहारी हों। दालिंग गोमछेन स्वयं मांस-भोजी था। बातचीत के सिलसिले में एक बार मैंने उससे अपनी शंका प्रकट की कि बुद्ध भगवान् ने तो अहिंसा को परमधर्म माना है, तब क्यों बहुत से तिब्बती बौद्ध मांस की भी भोज्य पदार्थों में गणना करते हैं।
उसने तुरन्त उत्तर दिया-"यह प्रसङ्ग तो कुछ ऐसा-वैसा है नहीं कि मैं एक-दो वाक्यों में आपके सवाल का जवाब दे सकूँ। बात यह है कि हम मनुष्यों की ही भाँति पशुओं में भी बहुत सी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, iswoatumaragyanbhandar.com