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लामा लोगों का आतिथ्य में गृहस्थों के अतिरिक्त और कोई इस प्रकार के बाल रक्खे देखा जाता है तो लोग उसे 'नालजोपा' ही समझते हैं जो रहस्यपूर्ण 'सुगम मार्ग' का अनुसरण करके मुक्ति प्राप्त करने की चेष्टा में प्रयत्नशील रहते हैं।
नये महाराजा तुल्कु की प्रार्थना पर साक्योंग गोमछेन ने लोगों को धर्म का उपदेश देने के लिए राजधानी में एक दौरा करने का निश्चय किया। इन व्याख्यानों में से एक को देखने का अवसर मुझे भी प्राप्त हुआ था--देखने का इसलिए कि उस समय मेरी तिब्बती भाषा की जानकारी बिल्कुल नहीं के बराबर थी। वह जो कुछ कहता था उसका मतलब तो रत्ती भर भी मेरी समझ में नहीं आता था, लेकिन मैं देखती अवश्य थी कि उसकी जोरदार भाषा, जोश और व्याख्यान देने के शानदार ढंग से जनता के चेहरे का रंग पल-पल पर बदलता रहता था। __ इस ढंग पर धर्म का उपदेश करनेवाला साक्योंग गोमछेन के अतिरिक्त और कोई भी बौद्ध भिक्षु मेरे देखने में नहीं आया । इसका कारण केवल यह है कि पुरानी बौद्ध-प्रणाली के अनुसार जोरदार भाषा में ओजपूर्ण वक्तृता त्याज्य मानी गई है। धर्म के सूक्ष्म सिद्धान्त तो शान्त भाव से उपदेशों के आदान-प्रदान से ही बुद्धि में आ सकते हैं।
एक दिन मैंने प्रश्न किया--"परम मोक्ष (थप) क्या है ?"
मुझे बतलाया गया-"समस्त सिद्धान्तों और कल्पना की एकमात्र उपेक्षा, भ्रम पैदा करनेवाली मस्तिष्क की समग्र चेष्टाओं की अवहेलना का ही दूसरा नाम परम मोक्ष है।"
* देखिए सातवाँ अध्याय ।
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