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प्राचीन तिब्बत लोगों ने एक ऐसे व्यक्ति को खोजा, जिस पर उन्हें कुछ अधिक विश्वास था। ___ एक शाम को लाछेन का गोमछेन बुलाया गया। वह पूरा जादूगरों का सा बाना बनाकर और नरमुण्डों की माला गले में डालकर बाहर मैदान में सबके सामने निकला। धधकती हुई आग के सामने खड़े होकर वह अपने जादू के खजर (फळ) से बड़ा देर तक हवा में न जाने कौन-कौन निशान बनाता रहा। वह किन अदृश्य दैत्यां से लड़ रहा था, इसका तो मुझे पता नहीं चला लेकिन मैंने देखा कि अँधेरे में अकेला ऊपर को उठती हुई लहरों के सामने खड़ा वह स्वयं एक दैत्य से कम भयंकर नहीं दीखता था। ___ यद्यपि मैं पोदाऽङ् में निश्चित रूप से ठहरी हुई थी फिर भी सिक्कम की सीमा के बाहर तक मेरा आना जाना नहीं रुका था। पूर्वी तिब्बत से दो गोमछेन हिमालय की पहाड़ियों में रहने के लिए आ गये थे। संयोग-वश मेरी मुलाक़ात इन लोगों से हो गई।
इनमें से एक साक्योंग में रहता था और इसी वजह से साक्योंग गोमछेन कहलाता भी था। तिब्बती प्रथा के अनुसार किसी व्यक्ति को उसका नाम लेकर पुकारना शिष्टाचार के विरुद्ध समझा जाता है। नौकरों के सिवा प्रत्येक व्यक्ति की कोई न कोई उपाधि होती है और लोग उसे इसी नाम से जानते भी हैं।
साक्योंग गोमछेन को बहुत सी आदतें विचित्र और उसको अपनी थीं। किन्तु वह स्पष्ट विचारों का आदमी था। वह प्रायः श्मशानों की सैर करने जाया करता था और अपने बन्द कमरे में घण्टां बैठा मन्त्र जगाया करता था। भिक्षुओं की तरह का गेरुआ वस्त्र वह कभी नहीं पहनता था और छोटे-छोटे बाल रखने के बजाय बालों का जूड़ा सर पर बनाये रहता था। तिब्बत
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