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लामा लोगों का आतिथ्य मैन देखा कि मन्दिर में रहनेवाले छाट-बड़े सभी लोग वहाँ जमा हाकर धीरे-धीरे काई मन्त्र दुहरा रहे है। छोटे-छोटे बच्चे रात
त भर जागत रहने के प्रयत्र में बैठे-बैठे थक जाते हैं। उन्हें डर लगा रहता है कि जहाँ एक ज्ञगण के लिए उनकी आंग्य पी. उनका मन्त्रयाठ रुका. महाकाल कट जायगा और मवम पहले वे ही उसके काप के भागी होंगे। कुछ समय के लिए पाम के छाटबाट गाँवा में ना पूरी खलबली मच जाती है। महाकाल को इस स्वतन्त्रता म उनके सभी बाहरी दैनिक कार-बार रुक जात है। वे साँझ ही को अपने घर दरवाज़ भीतर म बन्द कर रखते है और मातामा की अपने बच्चों को कड़ी हिदायत रहती है कि वे सूर्य डूबन के पहले ही घर वापस लौट आवें ।
साधारण ताकत रखनेवाल असुर लोगों को क्षति पहुंचाने के दाँव में देश में इधर-उधर घूमत रहते हैं। मन्त्रबल में इनका एक स्थान पर बुलाकर इन्हें पतली लकड़ी और रङ्ग-बिरङ्ग धागों से बने हुए एक सुन्दर पिंजड़ में घुसने के लिए विवश किया जाता है । इसके बाद यह छोटा पिंजड़ा और उसके बदनसीब बन्दो एक अग्निकुण्ड में सावधानी के माथ डाल दिये जाते हैं।
परन्तु मान्त्रिका के भाग्य से ये असुर अमर हात है। हर दूसरे साल फिर व ज्यां के त्यां जी उठत हैं और फिर उनका विनाश करने के लिए वे ही उपचार करने पड़त हैं। इस भाँति मान्त्रिको की गजी की समस्या भी महज ही में हल होती रहती है।
यह सब तमाशा मन अपनी आँखों में दखने का अवसर मिला। इतनी सावधानी से काम लेने पर भी कुछ लामाओं का यह शङ्का बनी रही कि अभी मब असुर उनके मन्द में नहीं आ के ये कुछ जा पकड़े जाने से बच गये हैं--दश में घूम-घूमकर शेनानी करने का मौका दंड रह हैं इनम्म निबटन के लिए लामा
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