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प्राचीन तिब्बत
रौद्र रूप है । अपनी विद्या के बल से महाकाल को अपना दास बनाकर लामा लोग उससे तरह-तरह का काम लेते हैं और सुनी अनसुनी करने पर निर्दयतापूर्वक उसे दण्ड भी देते हैं ।
जब वह चीन में था असन्तुष्ट हो गये । पूँछ में बाँध दी
किंवदन्ती है कि कर्ममा सम्प्रदाय के एक आदरणीय लामा ने महाकाल को अपना सेवक बनाकर रक्खा | तो किसी कारण वहाँ के महाराजा उससे उन्होंने आज्ञा दी कि लामा की दाढ़ी घोड़े की जाय और घोड़ा दौड़ाया जाय । सङ्कट के समय लामा ने महाकाल का स्मरण किया, किन्तु महाकाल के पहुँचने में देरी हो गई । किसी तरह मन्त्र के बल से अपनी लम्बी दाढ़ी को चेहरे से दूर करके इस विपत्ति से लामा ने छुटकारा पाया। बाद में जब महाकाल उसके पास पहुँचा तो लामा ने क्रोध में आकर उस बेचारे को इतने जोर का थप्पड़ लगाया कि यद्यपि इस घटना को हुए कई सौ वर्ष व्यतीत हो गये, लेकिन आज भी उसके गाल वैसे ही फूले हुए हैं।
यहाँ और दूसरे मठों में भी, कहा जाता है कि, विचित्र प्रकार की अनहोनी बातें देखने में आती हैं। कभी-कभी महाकाल के पास सामने के चबूतरे पर रक्त की बूंदें टपकी हुई मिलती हैं और कभी-कभी आदमी के दिल या दिमाग़ का बचा हुआ भाग । लामा लोगों का कहना है कि ये चिह्न भयङ्कर देवता के कुपित होने का परिचय देते हैं।
महाकाल की मूर्त्ति को त्रापा लोग मन्त्र का पाठ करते हुए बड़ी सावधानी के साथ बाहर निकालते हैं और एक अँधेरे कठघरे में ले जाकर रख देते हैं। दो चेले उस पर पहरा देने के लिए तैनात कर दिये जाते हैं जो बराबर मन्त्रों का उच्चारण करते रहते हैं । एक क्षण के लिए उनके होंठ रुके कि महाकाल छुड़ाकर भागा ।
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