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लामा लोगों का आतिथ्य इस बड़े कमरे में एक कोने में मैंने एक तिपाई पर अपनी किताबें सजा दी और अपनी फोल्डिंग मेज़ और कुरसी ठिकाने से रख दी। यह मेरा काम करने का कमरा' हुआ। दूसरे कोने में लेटने का सामान लगाया गया। बीच में एक अच्छी-खासी जगह बैठने-उठने के लिए निकल आई। __पोदाऽङ के मन्दिर में दिन में दो बार-सूर्योदय और सूर्यास्त के समय-पूजा होती थी। ग्येलिऽ, रैंग दोऽज और नगाड़े का सम्मिलित स्वर बड़ा भला लगता था। सुनते-सुनते मैं अपने को भूल जाती थी। किसी गहरी सरिता के गम्भीर प्रवाह के समान रागिनी धीरे-धीरे चुपचाप आती और कानों में समा जाती थी। इस संगीत की स्वर-लहरी हृदय में एक विचित्र प्रकार के करुण भाव का सञ्चार करती थी। ऐसा प्रतीत होता था जैसे सदियों से खोई हुई मानवता के अवसाद की कोई हल्की किरण अँधेरे में भूलकर आ पड़ी हो।
तिब्बत में वर्ष भर में एक बार असुर-पूजा होती है। ऐसा संयोग हुआ कि मेरे वहाँ ठहरने के समय के भीतर ही यह पूजा
आ पड़ी। लामा लोगों के प्रत्येक मठ में एक अलग मन्दिर या कमरे में इन असुरों की स्थापना होती है। साल भर में बस यही केवल एक बार इन्हें बाहर निकाला जाता है। बाकी समय में ये एक प्रकार से कारागार में पड़े-पड़े सड़ा करते हैं। ये असुर और कोई नहीं, भारतवर्ष के बहुत पहले के ही निकाले हुए प्राचीन देवता हैं। तिब्बती लोगों ने इनके ऊपर विशेष कृपा करके इन्हें अपने यहाँ आश्रय दे दिया है, परन्तु इनको विघ्नकारी और उपद्रवी समझकर इन्हें पूरे साल भर कारागार में बन्दी रखते हैं।
इन अभागे, देश से निकाले हुए, देवताओं में महाकाल सबसे प्रमुख है। महाकाल की मूर्ति संहारकर्ता शिव भगवान् का ही
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