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प्राचीन तिब्बत जो प्रेतात्मा यह सब बोलती हुई समझी जाती है उसका माता, स्त्री और बच्चे फूट-फूटकर रोने लगते हैं। उनका सबसे पहला काम किसी बोन मांत्रिक के पैरों पड़ना होता है।
"बिना एक सुअर या गाय की बलि दिये हुए काम नहीं बन सकता। दैत्य तो वश में आ जायगा, लेकिन इसके लिए काफी सर मारना होगा। काम आसान नहीं है ।" --बोन उन्हें समझा देता है। ___ बलि-पशु और अन्य जो-जो सामग्री वह माँगता है वह तत्काल जुटा दी जाती है। बलि चढ़ाकर बोन पूजा पर बैठता है और आँखें मूंदते ही वह दैत्य की गुफा में पहुँच जाता है। लेकिन दैत्य प्रायः अपना वादा तोड़ देता है। बलि पा लेने पर भी वह अपने बन्दी को मुक्त नहीं करता। तब लाचार होकर बोन उससे भिड़ जाता है और युद्ध के द्वारा उसे परास्त करके किसी तरह राह पर लाता है। हाथापाई करते करते वह थक जाता है, हॉफने लगता है और उसका शरीर पसीना-पसीना हो जाता है। ___ कुटुम्ब के सभी लोग बड़ी उत्कण्ठा से उसकी मुखमुद्रा की
ओर ध्यान लगाये रहते हैं और जब बोन आँखें खोलते हुए मुस्कराकर बतलाता है कि मैंने दैत्य को परास्त कर दिया है तो उन भोलेभाले अभागों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता।
किन्तु शायद ही कभी पहले ही प्रयत्न में बोन को सफलता मिलती हो। बार बार वही मन्त्रपाठ, पशु संहार और अन्य उप. चार किये जाते हैं और हर बार बोन मान्त्रिक की नई मेहनत के लिए नई दक्षिणा होती है।
पुनर्जन्म के पहले कुछ समय तक आत्माओं को 'बार्डो' में रहना पड़ता है। मृत्युलोक में उसे किस योनि में जन्म लेकर जाना पड़ेगा, इसका निर्णय शिजे ( यमराज ) करता है।
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