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प्राचीन तिब्बत इसके बाद मृतात्मा का मृत्युलोक से सब प्रकार का सम्बन्ध टूटा हुआ समझ लिया जाता है। लेकिन उसके भूत बनकर फिर
आने की सम्भावना बनी रहती है। इस प्रेत-शंका के निवारण के लिए शव के घर से बाहर होते ही उसके नाम पर एक बड़ा सहभोज किया जाता है जिसमें घर का बड़ा-बूढ़ा खड़ा होकर मृत जीव की आत्मा को सम्बोधित करके यों कहना शुरू करता है"अमुक-अमुक...सुनो...तुम अब मर चुके हो। इस बात में किसी तरह का सन्देह मत रखना। यहाँ अब तुम्हारा कोई काम नहीं है। खूब डटकर अन्तिम बार अपना खाना खा लो। तुम्हारे सामने का रास्ता बड़ा लम्बा और बहुत टेढ़ा है। तुम्हें मार्ग में बहुत से पहाड़ और नाले पार करने पड़ेंगे। साहस बटोर लो। अच्छी तरह समझ लो कि अब यहाँ वापस नहीं लौटना है।" ____एक जगह तो इससे भी अधिक मनोरञ्जक वार्तालाप सुनने में आया--"पाग्दजिन, तुम्हें इस बात का पता होना चाहिए कि तुम्हारे घर में आग लग गई थी और उसमें सब कुछ स्वाहा हो गया है। तुम शायद कोई क़र्जा चुकाना भूल गये थे, इसलिए तुम्हारे दोनों लड़के पकड़ लिये गये हैं। तुम यह भी न जानते होगे कि तुम्हारे बाद तुम्हारी स्त्री ने क्या किया। उसने दूसरी शादी कर ली है। यह सब देखकर तुम्हें बहुत दुःख होगा। इसलिए अब तुम फिर यहाँ लौटने को मूर्खता मत करना।" ____ मैं शोकपूर्वक यह सब दुःख-वृत्तान्त सुनती रही। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने पूछा-"आखिर यह सब हुआ कैसे ? विपत्तियों का यह पहाड़ क्या एकदम......" ___ सबके सब उल्टे मेरे ही ऊपर हँस पड़े। बोले-"अरे, यह सब तो झूठ है। हमने यों ही कह दिया। घर-बार सब दुरुस्त है।
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