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तिब्बत के लामा मृत मनुष्य की आत्मा को परलोक में ठीक रास्ते पर रखने के सम्बन्ध में तिब्बती में एक किताब है। उस पुस्तक में इस विषय पर लिखा है
(१) शरीर को किसी पहाड़ी पर ले जाते हैं। हाथ-पैर तेज चाक से काट डाले जाते हैं। हृदय और फेफड़े भूमि पर डाल दिये जाते हैं और चिड़ियाँ, भेड़िये और लोमड़ियाँ इनसे अपनी तुधा शान्त करती हैं।
(२) शरीर का किसी पवित्र नदी में विसर्जन कर दिया जाता है। रक्त नीले जल में मिल जाता है; मांस और चर्बी से मछलियाँ और ऊदबिलाव अपना भोजन प्राप्त करते हैं।।
(३) शरीर का दाह-कर्म कर दिया जाता है। मांस, चर्बी और हड्डी जलकर भस्म की ढेरी हो जाते हैं। गन्ध से तिस्तगण का पालन-पोषण होता है।
(४) शरीर पृथ्वी के भीतर गाड़ दिया जाता है। इससे कीड़ों को आहार मिलता है।
जो लोग पैसेवाले होते हैं वे श्राद्ध करनेवालों को छ:-छः हप्ते तक लगाये रखते हैं। प्रतिदिन वे हो उपचार बार बार किये जाते हैं। आखिर में लकड़ी का एक हल्का टट्टर बनाकर तैयार किया जाता है। इसे मरे हुए मनुष्य के सब कपड़े पहना दिये जाते हैं और धड़ के ऊपर उसो की मुखाकृति का काराज का बना हुआ एक चेहरा रँगकर रख दिया जाता है। कभी उसका नाम भी ऊपर लिख देते हैं। इसके बाद उस टट्टर के मुंह में श्राद्ध करानेवाला आग लगा देता है। कहना न होगा कि उस पर के वस्त्रों को वह पहले से ही उतार लेता है। ये कपड़े उसकी निजी सम्पत्ति होते हैं।
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