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प्राचीन तिब्बत है, किन-किन अज्ञात और विचित्र लोकों से होकर उनकी श्रात्मा गुजर रही है, किधर क्या है इन बातों का पता उन्हें भली भाँति चलता रहता है।
परन्तु साधारण लोगों के सम्बन्ध में यही बात लागू नहीं होती। जो लोग मृत्युशास्त्र की ज्ञातव्य बातों से अनभिज्ञ रहते हैं उन्हें मरते समय और मरने के बाद दूसरों की मदद लेनी पड़ती है। जो बातें उन्होंने जीवित रहकर नहीं सीखी हैं वही उन्हें मरते समय
और मरने के बाद एक अनुभवी लामा सिखाता है। मार्ग में मिलनेवाले सभी प्रकार के विचित्र जीवों और बाधाओं से वह उनका पूरी तरह परिचय करा देता है, विश्वास दिलाता है और निरन्तर पथ का निर्देश करने को तत्पर रहता है।
मरता हुश्रा मनुष्य एकदम अचेत न होने पावे, इस बात का लामा को बड़ा ध्यान रखना पड़ता है। धीरे धीरे भिन्न भिन्न इन्द्रियों की विभिन्न व्यापारशक्ति के क्षीण होने की ओर वह बराबर जीवात्मा का ध्यान आकृष्ट किये रहता है। अन्त में प्राण-पखेरू को काया के पिजरे से मुक्त करने के लिए लामा प्रयत्नशील होता है। यह आवश्यक है कि प्राणवायु ब्रह्माण्ड के मार्ग से ही बाहर निकले। ऐसा न होने पर जीव का भविष्य घोर अन्धकार में जा पड़ता है। ___जीवात्मा की विधिवत् मुक्ति के लिए 'हिक' और 'फट' का ठीक-ठीक उच्चारण करना पड़ता है। जिस करामाती लामा को इन शब्दों का ठीक उच्चारण आता है, उसे अपनी मृत्यु के समय किसी दूसरे व्यक्ति को समीप रखने की आवश्यकता नहीं रहती। जब नियत समय आने को होता है तो उसे पहले से ही पता चल जाता है और वह मन्त्र पढ़ना आरम्भ कर देता है। 'हिक' और 'फट' चिल्लाते-चिल्लाते वह प्राणत्याग करता है।
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