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तिब्बत के लामा
इस ढङ्ग पर बहुत से लामा आत्महत्या के कठिन कार्य में सहज हो सफलश्रम हो जाते हैं और सुनने में आता है कि बहुतों ने सचमुच ही ऐसा किया भी है।
जीवात्मा काया से उन्मुक्त होकर एक अज्ञात पथ की ओर अग्रसर होती है। आम लोगों में यह विश्वास है कि आत्मा सचमुच ही कोई यात्रा करती है और उसे मार्ग में मिलनेवाले देशों
और जीवों की कोई वास्तविक स्थिति होती है। किन्तु और समझदार लामा इस यात्रा को केवल स्वयं-निर्मित भ्रम मात्र मानते हैं। उनका कहना है कि जीवात्मा अपने आप गत जन्म के
आचार-विचार के आधार पर एक प्रकार के धुंधले छाया-स्वप्न का निर्माण करती चलती है। ___ कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि आत्मा के शरीर से मुक्त होने के थोड़ी देर बाद ही उसका एक प्रकार के दिव्य प्रकाश से साक्षात्कार होता है। इस तेज के सामने उसकी आँखें अगर ठहर गई.- वह अन्धा नहीं हो गया तो उसे निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है; नहीं तो फिर उसी आवागमन के चक्र चलने की प्रणाली प्रारम्भ होती है।
तिब्बत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने समय का अधिक हिस्सा बेकार काहिली में बैठे-बैठे बिता देते हैं। इनसे तरह-तरह की अनूठी बातें सुनने को मिलती हैं। बहुतों का यह दावा है कि उन्होंने ऐसे लोकों में भ्रमण किया है, जहाँ साधारण मनुष्य केवल मरकर ही पहुँच सकते हैं। ऐसे लोकों को "बा?"
और इनसे लौटे हुए इन विचित्र जीवधारियों को देलोग कहते हैं। ___ सौरंग के गाँव में एक बुढ़िया से मेरी भेट हुई जो कुछ साल पूर्व बराबर एक साल तक निर्जीव सी बनी रही। उसका कहना था कि उसे स्वयं अपने शरीर की स्फूर्ति और हल्केपन पर बड़ा
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