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तिब्बत के लामा मृत्यु और परलोक के विषय में लामा लोगों के बड़े मनोरञ्जक और भिन्न-भिन्न विचार हैं। बहुत से विदेशियों को ये बातें अज्ञात हैं। इस सम्बन्ध में जानकारी हासिल करने का शौक मुझे इन्हीं दो विद्वानों के सम्पर्क में आकर हुआ। __ मृत्यु के बाद तुरन्त ही जीव की क्या दशा होती है--इस विषय में तिब्बती लामाओं और बर्मा, लंका, स्याम आदि दक्षिणी देशों के बौद्धों में परस्पर मतभेद है। आम तौर पर बौद्धों की धारणा है कि मृत्यु के पश्चात् तत्काल ही जीव का मृत्युलोक में पुन: आगमन हो जाता है। और अपने कर्मों के अनुसार उसे अच्छी या बुरी योनि में जन्म लेना पड़ता है। किन्तु तिब्बती लामाओं का विश्वास है कि मृत्यु के अनन्तर कुछ समय बीत जाता है और तब कहीं छः जीवधारियों में से किसी एक में जीवात्मा जन्म लेती है। ___ "जो युक्तिवान् है वह नरक में भी सुखभोग कर सकता है" तिब्बत में एक प्रचलित कहावत है। 'थब्' अर्थात् ढब से लामा लोगों का क्या अभिप्राय होता है, इसका आभास पाठक को इससे मिल जायगा। जो वास्तविक 'थब्' का ज्ञाता है वह जहाँ तक सम्भव है, अपनी इच्छा के अनुसार जिस योनि में चाहे फिर जन्म ले सकता है। ____ "जहाँ तक सम्भव है" तिब्बती लामा कहते हैं-"पूर्व जन्म के कर्मों के फलाफल का भार भी इस 'थब' को काफी हद तक प्रभावित करता है।"
करामाती लामा लोगों के बारे में यह कहा जाता है कि उन्हें अपनी मृत्यु का पता कुछ समय पहले से ही लग जाता है। मृत्यु की भयंकर यातनाओं का उन्हें कुछ भी भय नहीं रहता और मरते समय वे पूर्ण रूप से सजग और सचेत रहते हैं। क्या हो रहा
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