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अध्यात्म की शिक्षा
१४९ मतावलम्बियों के एकेश्वरवाद का तात्पर्य हो सकता है। इसका अर्थ परमपुरुष होता है और यह योगशास्त्र का अन्तिम शब्द भी है जिसके उच्चारण करने के बाद फिर सब कुछ निःशब्द है। श्री शङ्कराचार्य के मतानुसार यह समस्त स्मरण-चिन्तन का एकमात्र आधार है। ओम् वह शब्द है जिसके ठीक उच्चारण से समाधिस्थ योगी योग की चरम सीमा पर पहुँचकर ब्राह्मी स्थिति में प्रवेश कर जाता है और जिसके सहारे वह लौकिक और पारलौकिक ऐश्वयों की प्राप्ति सहज ही कर सकता है।
ओं, हं और फट ये तीनों संस्कृत शब्द तिब्बतियों ने भारतवासियों से लिये हैं। किन्तु न तो वे इनके वास्तविक अर्थ से परिचित हैं और न उन्हें यही पता है कि भारतीय योगशास्त्र में इन शब्दों का कितना महत्वपूर्ण स्थान है । वे तो केवल यही जानते हैं कि इन शब्दों में अद्भुत प्रभावशालिनी शक्ति है। और इसी लिए उन्होंने इनका प्रयोग अपने हर एक धार्मिक और ऐन्द्रजालिक मन्त्रों के साथ कर भर दिया है। ___ पूरे मन्त्र 'ओं मणि पद्म हुँ' के कई अर्थ हैं। सबसे सीधा और आसान मतलब इस प्रकार है-'मणि पद्म' का संस्कृत में अर्थ होता है 'कमल में रत्न'। 'कमल' संसार है और 'रन' स्वयं तथागत बुद्ध भगवान् की शिक्षाएँ हैं। 'हुँ' एक प्रकार का युद्ध में ललकारने का शब्द है। ललकारा किसे जाता हैकौन अपना शत्र है ? इसकी व्याख्या लोग अलग-अलग अपनी बुद्धि के अनुसार करते हैं। कोई-कोई इसे भूत-प्रेतों के लिए समझते हैं। कोई क्रोध, तृष्णा, घृणा, मोह और दम्भ आदि मानसिक विकारों को ही अपना शत्र मानते हैं। एक माला होती है और वह इसी मन्त्र को पढ़ते पढ़ते १०८ बार फेरी जाती है। एक फेरा पूरा होने पर हीः' शब्द का उच्चारण किया जाता है।
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