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प्राचीन तिब्बत 'ही' का अर्थ कुछ लोग कृत्रिमता से ढंकी हुई आन्तरिक वास्तविकता से लगाते हैं। ____ साधारण बुद्धि के लोग विश्वास करते हैं कि 'ओं मणि पद्म हुँ' का जाप करने से निस्सन्देह वे स्वर्गलोक में वास पावेंगे।
जो और मतिमान होते हैं वे बतलाते हैं कि इस मन्त्र के छहों शब्द छः जीवधारियों से सम्बन्ध रखते हैं और अध्यात्मवादविषयक छः रंगों का प्राशय प्रकट करते हैं। ____ 'ओम्' श्वेतवर्ण है और देवताओं (ल्हा) के अर्थ में आता है। 'म' नीलवर्ण है और इसका सम्बन्ध असुरों ( ल्हामयिन ) से है । 'णि' पीला है और मनुष्यों ( मी) के अर्थ में आता है। 'पद्' हरा है और इसका श्राशय जानवरों (त्यूदो ) से होता है। 'मे' लाल है। इसका अर्थ होता है वे लोग जो मनुष्य नहीं हैं ( यिदाग* या मि-मा-यिना )। 'हुं' काला वर्ण जिसका अर्थ नरक में रहनेवाले प्राणियों से है।
इस प्रकार का अर्थ लगानेवाले तत्त्वविज्ञों का कहना है कि इस मन्त्र के जाप से मनुष्य छः योनियों में से किसी में जन्म नहीं लेता, अर्थात् परम मोक्ष पा जाता है।
'ओं मणि पद्म हुँ' के अतिरिक्त और भी कई मन्त्र हैं; जैसे 'ओं बनसत्त्व' या 'ओं बन गुरु पद्मसिद्धि हुँ'...आदि ।
* यिदाग लोगों का शरीर पर्वत के आकार का होता है और गर्दन सूत के इतनी पतली होती है। ये बड़े अभागे जीव होते हैं
और इन्हें सदैव भूख-प्यास सताती रहती है। जब ये जल के पास पहुँचते हैं तो पानी आग की लपटों में बदल जाता है। हर सुबह तिब्बती इन्हें अभिमंत्रित जल चढ़ाते हैं जो आग में नहीं बदलता :
1 इस श्रेणी में गन्धर्व, किन्नर, दैत्य इत्यादि आते हैं ।
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