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प्राचीन तिब्बत और मानसिक शान्ति-इन सबसे मोह दूर होता है; और मोह का सर्वथा निवारण ही मुक्ति का एकमात्र उपाय है। ____एक तीसरा तरीक़ा जिसे लोगों ने सीधा मार्ग* (या सोधा तरीका ) का नाम दिया है, बहुत ही आपत्ति-जनक समझा जाता है। जो लोग इसकी शिक्षा देते हैं, उनका कहना है कि इस मार्ग को पकड़ना वैसा ही है जैसे कि किसी पहाड़ी की ऊँची चोटी तक पहुँचने के लिए चक्कर मारती हुई ऊपर जानेवाली पहाड़ी पगडण्डी का सहारा न लेकर कोई एकदम सीधी चट्टानों को पार करता हुआ ऊपर तक पहुँचने का दुस्साहस करे। इस काम में तो बस जो सच्चे शूर और असाधारण साहसी होंगे वे ही सफलता पा सकेंगे। थोड़ी सी भी लापरवाही हो जाने से पतन अवश्यम्भावी रहता है; चतुर से चतुर आदमी सैकड़ों गज़ नीचे गिरकर अपनी हड्डो-पसली तोड़ लेगा।
इस पतन से तिब्बती धर्म-आचार्यों का तात्पर्य धार्मिक अधःपतन से है जो कि मनुष्य को नीची से नीची दशा तक पहुँचा सकता है; आदमी मनुष्य से जानवर बन सकता है। ___मैंने एक विद्वान लामा को यह कहते हुए सुना है कि सुगम मार्ग के कठोर सिद्धान्त बहुत कुछ उत्तरी और मध्य एशिया के एक बड़े प्राचीन मत से मिलते-जुलते हैं। लामा का पक्का विश्वास था कि ये सिद्धान्त बुद्धदेव की सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं से हू-बहू मिलतेजुलते हैं जैसा कि भगवान् के उपदेशों से साफ पता चलता है। पर लामा ने यह भी बतलाया कि बुद्ध भगवान् जानते थे कि सुगम-मार्ग का उपाय बहुत थोड़ों के लिए हितकर होगा। साधारण तौर पर लोगों के लिए वही रास्ता ठोक होगा जो सीधा-सादा हो और जिसमें किसो आपत्ति की सम्भावना न हो। इसी लिए उन्होंने
* लाम चंग अर्थात् छोटा रास्ता ।
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