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इच्छा-शक्ति और उसका प्रयोग
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जब वह घोड़ा लेकर हमारे पास तक या गया तो मुझे पता चला कि वह 'कोई चीज़' और कुछ नहीं, दही से भरा हुआ एक काठ का बर्तन है। उसने उसे लामा को नहीं दिया, बल्कि उसे हाथ में लिये हुए उसकी ओर खड़ा देखता रहा जैसे पूछ रहा हो"क्या आपने यही चीज़ मँगाई थी ? अब मैं इस दही का क्या करूँ ?”
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उसके इस मूक प्रश्न के उत्तर में लामा ने सर हिलाकर "हाँ" कर दिया और पा को बतलाकर कहा कि दही मेरे लिए है दूसरी जिस घटना का उल्लेख मैं कर रही हूँ वह तिब्बत के भीतर नहीं बल्कि उस सरहदी हिस्से में घटी जो अब चीन के चुान और कॉंसू के प्रान्तों में मिला लिया गया है । तान और कुन्का दर्रे के बीच में जो जङ्गल पड़ता है उसके पास से होकर हम लोग यात्रा कर रहे थे । इन हिस्सों में डाकू बहुतायत से देखे जाते हैं। इधर से जानेवालों का जितनी ही बड़ी संख्या में सफ़र करना हो सके उतना ही अच्छा होता है । हमारे साथ छ: यात्री और आ मिले थे। इनमें से पाँच चीनी व्यापारी थे और एक कोई लम्बे कद का बोन्पो जिसके बड़े-बड़े बाल किसी लाल चीज में लपेटे हुए पर बहुत बड़े साफ़ का काम दे रहे थे ।
मैंने देखा, मौक़ा अच्छा है। इससे कोई न कोई नई बात अवश्य मालूम होगी। मैंने उसे अपने साथ भोजन करने की दावत दी। बात-बात में पता चला कि वह अपने गुरु का साथ देने जा रहा था । उसका गुरु एक भारी बोन्पो जादूगर था जो पास की किसी पहाड़ी पर एक बड़ा डब्थब ( अनुष्ठान ) कर रहा था। इस डब्थब से वह एक बड़े शक्तिशाली दैत्य को अपने वश में करना चाहता था । मैंने अपने मेहमान के गुरु से मिलने की
गुम्पा था थे और सर
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