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प्राचीन तिब्बत
यात्रा के लिए घोड़े को तैयार करने में मदद देने लगा । एकाएक उन घोड़ों में से एक रस्सी तुड़ाकर भाग खड़ा हुआ और वह रस्सी लेकर उसके पीछे दौड़ा ।
लामा शायद अधिक बातचीत करना पसन्द नहीं करता था । वह चुपचाप उसी भागे हुए घोड़े की ओर देखता रहा । अब मेरी निगाह लकड़ी के एक बर्तन पर पड़ी जिसके पेंदे में दही का बचा हुआ कुछ भाग सूख रहा था । दूर पर एक देहात दिखलाई दिया। मैंने अनुमान किया कि वहीं से लामा ने यह दही मँगाया होगा । बग़ैर तरकारी के सखे त्साम्पा को गले से नीचे उतारने में हमें कठिनाई हो रही थी और मैंने यौंगदेन के कान में चुपके से कहा - " लामा के चले जाने पर तुम उस देहात में जाना । वहाँ दही जरूर मिल जायगा" ।
यद्यपि मैं बिल्कुल धीरे बोली थी और हम लोग लामा के बहुत पास भी नहीं बैठे थे, फिर भी शायद लामा ने मेरी बात सुन ली। उसने मेरी ओर अपना मुँह किया और एक बार धीरे से उसके मुँह से निकला -- " निंजे !”
इसके बाद उसने उस तरफ़ अपना मुँह फेर लिया जिधर वह घोड़ा भाग गया था। वह गौर से उधर ही देखता रहा । त्रापा ने घोड़े को पकड़ लिया था और अब वह उसके गले में रस्सी डालकर वापस ले आ रहा था। अकस्मात् वह त्रापा ठिठक गया, जैसे उसे कोई बात याद हो आई हो । वह वहीं घोड़े को एक पत्थर से बाँधकर सीधा पीछे वापस लौटा 1 कुछ दूरी पर जाकर उसने सड़क छोड़ दी और उसी देहात की ओर चला गया जिसे मैंने योगदेन को दिखाया था। थोड़ी देर बाद हमने उसे घोड़े के पास 'कोई चीज़' लेकर लौटते देखा ।
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