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इच्छा-शक्ति और उसका प्रयोग १२३ फिर भी इसमें आग की लपटें ऊपर को ओर उठती रहती हैं और प्राणायाम को वायु उन्हें प्रज्वलित करती रहती है।
२-'उमा' और बड़ी दिखाई पड़ती है। बढ़ते-बढ़ते यह कनिष्टिका उँगली के आकार की हो जाती है।
३–बढ़ते-बढ़ते वह भुजा के आकार की हो जाती है।
४-इस नाड़ी का प्रसार समस्त शरीर में हो जाता है। या दूसरे शब्दों में शरीर ही 'त्सा' हो गया है-एक शीशे की नली के समान जिसमें प्रज्वलित अग्नि और वायु भरी है।
५-स्थूल आकार अब नहीं दिखलाई पड़ता। अपरिमित रूप से आकार में बढ़कर 'उमा' समस्त संसार में व्याप्त हो जाती है। चारों ओर अग्नि ही अग्नि दृष्टिगोचर होती है, जिसकी भयङ्कर लपटों के बीच नालजोर्पा अपने को घिरा हुआ देखता है।
आरम्भ में साधक पाँचवें अङ्ग पर जल्दी ही से पहुँच जाता है। योग्य, त्यूमो के रहस्य से भली भाँति परिचित साधक धोरेधोरे इतमीनान से अपनी क्रिया को पूरी करते हैं। फिर भी पाँचवें अङ्ग तक पहुँचते-पहुँचते कम से कम लगभग एक घण्टे के बराबर समय लग ही जाता है।
इसके पश्चात् फिर वही ऊपरवाली क्रिया, विपरीत क्रम से, करते हैं अर्थात् पाँचवें अङ्ग से प्रारम्भ करके पहले तक पहुँचा देते हैं।
इस क्रिया को कुछ लोग केवल पहले पाँच अङ्गों तक पहुँचाकर समाप्त कर देते हैं और कुछ लोग पीछे के पाँच अङ्ग भी करते हैं। साधक इसे दिन में, या जब कभी उसे सर्दी लग रही हो, कर सकता है; किन्तु सीखने के लिए प्रात:काल ब्राह्म मुहूर्त का समय सबसे अधिक उपयुक्त माना गया है।
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