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प्राचीन तिब्बत होकर केवल इसी अग्नि और उसकी लपटों को प्रज्वलित रखने में प्रवृत्तिशील रहती हैं। ____ मालूम होता है, तिब्बती लोगों ने भारतवासियों की इड़ा, पिङ्गला, सुषुम्ना का भाव अपनाया है। तिब्बती भाषा में नाड़ी के अर्थ में 'त्सा' शब्द प्रयुक्त होता है। इन्हें क्रम से 'रोमा', 'क्याङमा' और 'उमा' की संज्ञा दी गई है।
वास्तव में ये 'त्सा' साधारण रक्त की नाड़ियों नहीं है। ये सूक्ष्म आकार की, सारे शरीर में चेतना को पहुँचाने की नाड़ियाँ मानी गई हैं। 'सा' संख्या में असंख्य हैं। इनमें से तीन जो सबसे मुख्य हैं उन्हें ऊपर बता दिया गया है। ___ तत्त्वविद् दार्शनिकों के मतानुसार इस प्रकार की किन्हीं नाड़ियों की शरीर के भीतर कोई वास्तविक स्थिति नहीं है। वे बस अध्यात्मवाद के सिलसिले में केवल मान भर ली गई हैं।
मुख्य क्रिया के दस विविध अङ्ग हैं, किन्तु यह बात भली भाँति जान लेनी चाहिए कि इन दो अङ्गों के बीच में कहीं कोई विराम नहीं है। एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा, इस प्रकार क्रमशः बराबर विविध अङ्गों में भिन्न-भिन्न कल्पनाएँ और विभिन्न अनुभव होते चले जाते हैं। पूरक, कुम्भक और रेचक के साथ-साथ नियमित रूप से मन्त्र-विशेष का जाप होता रहता है। प्रारम्भ से लेकर अन्त तक मस्तिष्क सर्वथा एकाग्र रहता है। साधक देखता है केवल एक वस्तु त्यूमो की अग्नि और अनुभव करता है केवल एक वस्तु-उस प्रज्वलित अग्नि का प्रचण्ड ताप ।
दस विविध अङ्गों का परिचय संक्षेप में इस प्रकार कराया जा सकता है
१-मुख्य नाड़ी 'उमा' कल्पना में देखी जाती है। यह इतनी पतली होती है जितना कि पतले से पतला सूत या बाल ।
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