________________
११८
प्राचीन तिब्बत "श्राह, मेरे भोले संन्यासी ! क्या सचमुच तुम इसी छोटी सी बात के लिए २५ साल से इतना कष्ट उठा रहे हो! एक मामूली सिक्के के बदले में माँझी तुम्हें इस पार से उस पार उतार देता।"
बिना आग के अपने को गरम करने की विधि मालूम होता है, लाची खाड पर्वत में गुफा-वास करते समय जब मिलारस्पा ने अपने आपको चारों ओर बर्फ से घिरा पाया और देखा कि अब उसका उसी गुफा में बरसात तक रुक जाना अनिवार्य हो गया है तो उसने भी इसी तदबीर से काम लिया था।
ऐसा होना असम्भव नहीं है। मिलारेस्पा कवि था और एक कवि की हैसियत से उसने इस अनुभव को अपनी एक कविता का विषय बना दिया, जिसके कुछ भाग का स्वतन्त्र अनुवाद यों है :
इस संसार से खिन्न होकर लाची खाङ को कन्दराओं में मैंने शरण ली है।
आकाश और पाताल ने मिलकर झमा को अपना संदेश देकर मेरे पास भेजा है। समोर और जल-इन तत्त्वों ने दक्षिण-देश के काले बादलों से मैत्री की। उन्होंने सूर्य और चन्द्र को बन्दी कर लिया। छोटे नक्षत्रों को आकाश से भगाया, और बड़ों को कुहरे में छिपा दिया । और तब बराबर नौ दिन और नौ रात तक बर्फ गिरी। सबसे बड़ी बौछारें, ऊपर से चिड़ियों की भाँति उड़ती हुई नीचे आई;
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com