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इच्छा-शक्ति और उसका प्रयोग ११७ तीन वर्ष तक अन्धकार पूर्ण एकान्तवास कर चुकने के पश्चात् वे साहसी शिष्य, जो अपने को परीक्षा में पूरे उतरने के योग्य समझते हैं, शालू की ओर चल पड़ते हैं। वहाँ ऊपर बताये हुए गड्ढों में ये उसी प्रकार बिठा दिये जाते हैं। गड्ढों में वे सात दिन तक रहते हैं, फिर बाहर निकलते हैं। लेकिन शालू में ऊपर की ओर नहीं बल्कि बग़ल को भोत में एक बहुत ही छोटा सा छेद रहता है। इस छेद की नाप परीक्षार्थी को दूसरी उंगली और अंगूठे के बीच में जितनी जगह आ सकती है, उसी के अनुसार रक्खी जाती है। उसे कूदने की भी जरूरत नहीं है। इतनी रियायत और कर दी जाती है कि परीक्षार्थी का एक स्टूल दे दिया जाता है। इसी पर चढ़कर उसे उस छोटे से छेद के बाहर रेंगकर निकल जाना होता है। ____ विद्वान् लामा लोग लड्-गोम्-पा की विद्या को स्वीकार करते हैं और इसके अभ्यास से शरीर में आ जानेवाली तेजी और हल्केपन की भी तारीफ करते हैं। पर मालूम होता है वे इस हुनर की ज्यादा परवा नहीं करते। उनकी यह उदासीनता हमें भगवान बुद्ध की जीवनी से सम्बन्ध रखनेवाली एक घटना की याद दिलाती है। __शाक्य-मुनि गौतम एक बार अपने शिष्यों के साथ एक जंगल को पार कर रहे थे। एक गुफा में कठिन तपस्या करते हुए एक साधु से उनकी भेट हो गई। पता चला कि बराबर २५ साल से वह उस गुफा में उसी प्रकार तपस्या करता चला आ रहा है। __"पर भाई मेरे, इस लम्बी और कड़ी तपस्या से तुम्हें लाभ क्या हुआ है ?" भगवान् ने उससे पूछा।
"मैं जिस नदी को चाहूँ उस पर खड़ाऊँ पहने हुए जल पर चलकर पार कर सकता हूँ।" गर्व में आकर तपस्वी ने कहा ।
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