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प्राचीन तिब्बत
वह जब हम लोगों के सामने से होकर निकला तो मेरे नौकर अपने-अपने खच्चरों पर से नीचे उतर पड़े। सबने सर झुकाकर उसे प्रणाम किया। लेकिन लामा लङ्-गोम्पा अपने रास्ते पर उसी तेजी के साथ बढ़ता चला गया। शायद उसने हम लोगों में से किसी को देखा भी नहीं ।
इसके चौथे रोज सबेरे हम लोग थेब -ग्याई प्रान्त की सरहदी सीमा पर पहुँचे जहाँ कि कुछ चरवाहे डेरे डाले पड़े थे । इन लोगों से बातें करने पर पता चला कि जिस दिन लामा लड्-गोम्-पा से हमारी भेट हुई थी उसके ठीक एक रोज़ पहले सन्ध्या समय पशुओं को इकट्ठा करते हुए एक डुम्पा (चरवाहे ) ने भी उसे उसी तरह जाते हुए देखा था । मैंने इससे कुछ अनुमान लगाने की कोशिश की। दिन भर में जितने घराटे हम सफ़र करते रहे थेजानवरों की रफ़्तार, अपने सुस्ताने और खेमे उखाड़ने के समय को निकालकर, सब जोड़-जाड़कर - हिसाब लगाया तो इसी परिणाम पर पहुँची कि चारों दिनों तक वह लामा उसी चाल से बिना कहीं रुके हुए रात-दिन बराबर चलता रहा है तिब्बती लोग अपने पैरों से बहुत काम लेते हैं।
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चौबीस घंटे तक बराबर चलते रहना इन लोगों की समझ से कोई अनहोनी बात नहीं है । लामा यौनदेन और मैं स्वयं- दोनों चीन से ल्हासा आते समय कभी कभी बराबर १९ घण्टे तक बिना कहीं रुके या सुस्ताये हुए चले हैं। एक बार तो हमें देन दर्दा को पार करने के लिए घुटनों तक जमी हुई बर्फ में चलना पड़ा था। फिर हमारी सुस्त चाल की लामा लड्-गोम्पा की तेज़ चाल से क्या तुलना ?
और फिर वह लामा कोई थेबग्याई से ही तो आ नहीं रहा था। उसने कहाँ से चलना आरम्भ किया था और वह कहाँ जाकर रुकेगा, यह सब मुझे कुछ भी ज्ञात न था । कुछ चरवाहों ने
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