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इच्छा-शक्ति और उसका प्रयोग
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लामा लङ गोम्पा – इन शब्दों ने मुझे एकदम चौकन्ना कर दिया । इन लोगों के बारे में मैंने पहले से ही बहुत कुछ सुन रक्खा था और थोड़ा-बहुत इनके शिक्षा- सिद्धान्तों से भी परिचित थी, लेकिन मैंने कभी अपनी आँखों से इन लोगों के करिश्मे नहीं देखे थे। मैं खुशी के मारे नाच उठी। क्या सचमुच आज मेरी बरसों को इच्छा पूरी होगी। अगर यह आदमी सचमुच ही ल-गोम्पा हुआ तो मुझे क्या करना होगा ? .... मैं उसे रोककर उससे कुछ बातें करूँगी । उसे और पास से देखूँगी, और उसका चित्र लूँगी... बहुत कुछ करूँगी । पर जैसे ही मैंने अपने मन की इच्छा प्रकट की, वैसे ही मेरा वही नौकर चिल्ला पड़ा"माँजी ! आप इस लामा को रोकने का या उससे बातचीत करने का बिल्कुल विचार न कीजिएगा। यात्रा करते समय ये लङ गोम्पा लामा गहरी समाधि की अवस्था में होते हैं । समय से पहले ध्यान टूट जाने से ङाग् का जाप करते-करते ये रुक जाते हैं । इनके भीतर जो देवता आया रहता है, वह भाग जाता है और ऐसी दशा में फिर इन बेचारों के प्राणों पर ही आ बनती है ।"
इतने में लामा लड्- गोम्पा बिल्कुल ही निकट आ गया । हमने देखा, उसकी मुख-मुद्रा शान्त और स्थिर थी । उसके नेत्र दूर किसी निस्सीम प्रदेश में निरुद्दश्य भाव से ताक रहे थे । वह दौड़ नहीं रहा था । ऐसा मालूम पड़ता था जैसे वह धरातल का छूता हुआ भागा चला जा रहा है और कूदता हुआ आगे बढ़ रहा है। उसके पैरों में रबड़ के गेंद की सी लाच था। हर बार जब उसके पैर पृथ्वी को छूते थे, तब वह दुगने जोर के साथ आगे कोठिल सा उठता था । वह एक हाथ से अपना लम्बा कुतो सँभाले हुए था और उसके दूसरे हाथ में फुर्बा था ।
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