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प्राचीन तिब्बत लङ्ग-गोम्-पा जैसे विचित्र दौड़ाक को अपनी आँखों से देख सकने की मेरी प्रबल इच्छा भी पूरी होने से बची नहीं रहो और संयोगवश मुझे इस विद्या के एक-दो नहीं, बल्कि तीन-तीन ज्ञाता देखने को मिले ।
पहले लङ्-गोम्-पा से मेरी भेट उत्तरी तिब्बत के चांग थांग*
___ गोधूलि की वेला थी। यौङ्गदेन, मैं और मेरे नौकर एक चौड़े ऊसर मैदान को पार कर रहे थे। अकस्मात् बड़ी दूर पर क्षितिज में अपने ठीक सामने किसी हिलती हुई काली चोज पर मेरी निगाह पड़ा। दूरबीन से देखने पर पता चला कि कोई
आदमी है। लेकिन आदमी इतनी तेजी से भला कैसे चल सकता है। मुझे बहुत अचम्भा हुआ और फिर इन निर्जन प्रदेशों में किसी से यात्रा में भेट हो जाना असम्भव सी बात थी। आदमी अकेला था। उसके पास कोई जानवर भी नहीं था। यह यात्री हो कौन सकता है ? मैं आश्चर्य में पड़ गई। ___ मेरे एक नौकर ने कहा कि शायद कोई भटका हुआ यात्री हो जो अपने जत्थे के साथियों से बिछुड़कर अलग जा पड़ा है। पर मैं बराबर उस आदमी को दूरबोन से देखती रही। सबसे अधिक आश्चर्य मुझे उसकी उस ग़जब की चाल पर हो रहा था, जिससे वह तेजी के साथ आगे बढ़ता हुआ चला आ रहा था। मैंने नौकर के हाथ में दूरबीन दे दो। उसने भी देखा और देखते ही चिल्ला पड़ा-“लामा लङ्गोम-पा चोग दा" अर्थात् यह तो कोई लामा लङ्गोम्-पा मालूम होता है।
* एक लम्बा-चौड़ा और ऊँचा ऊसर मैदान जिसमें सिर्फ थोड़े से खानाबदोश खेमों में रहते हो। चांग यांग का असली मतलब है "उत्तरी मैदान"; लेकिन अब यह शब्द किसी भी बड़े ऊसर मैदानजो उत्तरी तिब्बत के मैदानों की तरह हो-के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
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