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________________ इच्छा-शक्ति और उसका प्रयोग १११ बतलाया कि सम्भव है, वह त्सोग से आ रहा हो; क्योंकि त्सांग प्रान्त में ऐसे कई विद्यापीठ थे जहाँ लङ्-गोम् को शिक्षा का सुव्यवस्थित प्रबन्ध था। पता नहीं कि असलियत क्या थी। ____ यह संयोग ही था कि मुझे दूसरी बार, सुदूर पश्चिम के शेत्चुआनेज़ के स्वतन्त्र सूबे में, एक और लङ्ग-गोम्-पा की झलक देखने को मिल गई। पर इस बार उसे चलते हुए देखने का मौका नहीं मिला था। ___ हम लोग एक जङ्गल को पार कर रहे थे। हम और यौङदेन आगे-आगे थे और नौकर-चाकर पीछे। एकाएक एक मोड़ पर मुड़ते ही हमने अपने सामने एक आदमी को देखा जो एकदम नग्न था । उसके शरीर में तमाम लोहे की जंजीरें पड़ी हुई थीं। वह एक चट्टान पर बैठा हुआ कुछ सोच रहा था। अपने विचारों में वह ऐसा डूबा हुआ था कि हम लोगों के पास पहुँचने पर भी उसे कुछ खबर न हुई। हम लोग आश्चर्य में आकर ठिठक गये। लेकिन उस आदमी के विचारों का ताँता शायद टूट गया; क्योंकि उसकी दृष्टि हम लोगों पर पड़ी और वह हम लोगों को देखते ही बड़ी तेजी के साथ कूदकर एक झाड़ी में छिप गया। कोई हिरन वैसी छलाँग क्या मारेगा। थोड़ी देर तक उसको जंजीरों के झन्-झन् बजने की आवाज़ आती रही, फिर वह भी बन्द हो गई। ____ "लक्-गोम्-पा है, लड-गोम्-पा", यौड्देन ने मुझसे कहा"मैंने इसी तरह के एक आदमी को और भी देखा है। ये लोग अपने को भारी करने के लिए गले में जंजीरें डाल लेते हैं। क्योंकि कभी-कभी उनके हवा में उड़ जाने तक का भय रहता है।" . पूर्वी तिब्बत में एक और लङ्गोम्-पा से मेरी भेट हुई। इसे मैंने खामे प्रांत के एक भाग-'गा' में देखा था। इस बार भी हम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com
SR No.034584
Book TitlePrachin Tibbat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkrushna Sinha
PublisherIndian Press Ltd
Publication Year
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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