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प्राचीन तिब्बत ___अपने इस अनोखे शिष्य के बारे में जो कुछ पूछना-ताछना
था वह सब समझ-बूझकर कुशोग चुप हो गये। कुछ क्षण के बाद उन्होंने अपने एक नौकर को बुलाकर उसे समझा दिया कि इस बेचारे को रसोईघर में ले जाओ और इसे अँगीठी के पास बैठाकर खुब गरमागरम चाय पिलायो। इसके लिए एक पुराने बालदार (फर के ) कोट का भी प्रबन्ध कर दो। यह आदमी बराबर दो साल से जाड़े में ठिठुरता आ रहा है।
कर्मा दोर्ज अपने भड़कीले 'पागतसा' (भेड़ की खाल ) को पहनकर बहुत खुश हुआ, लेकिन उसे इस बात का बड़ा अफ. सोस रहा कि उसके गुरु ने उसका ऐसे ढङ्ग से स्वागत नहीं किया, जैसा कि "दैवी ढङ्ग" से पहुँचाये गये एक शिष्य का होना चाहिए था। उसने गोमछेन से फिर मिलकर उन्हें अच्छी तरह अपने बारे में बता देना और यह समझा देना कि वह गुरु से क्या क्या
आशा रखता है, बहुत आवश्यक समझा। पर इसकी नौबत ही नहीं आई। वृद्ध लामा का साफ-साफ आदेश उसे 'केवल हर तरह आराम से रखने का था। लाचार होकर कर्मा चुप रहा । अभी उसके गुरु की यही मर्जी थी। अब उसके सन्तोष के लिए केवल दो बातें रह गई थीं। कभी-कभी छज्जे पर कुशोग आकर बैठ जाते थे, उनकी एक झलक पा लेना और जब कभी वे अपने अन्य शिष्यों को किसी धार्मिक सूत्र की व्याख्या समझाने लगते थे तो उसे सावधान होकर सुनना ।
इसी प्रकार एक साल से कुछ ऊपर बोत गया। अब कमा धोरे-धीरे निराश होने लगा। वह बड़ी प्रसन्नता से सब प्रकार की मुसीबतों को झेलने और कठिन से कठिन परीक्षा देने को तैयार था पर इस प्रकार चुपचाप अकर्मण्य बनकर आराम से पड़े रहना उसे बड़ा बुरा लगने लगा। पर अब भी उसका यही विश्वास था कि
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