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पुराने धर्म-गुरु और उनकी शिष्य-परम्परा १०१ यशेज़ ने अपना हठ न छोड़ा। दूसरे वर्ष उसने दो बार फिर प्रयत्न किया। तीसरी बार जब वह गोमछेन के पास पहुँचा तो उसे लामा ने बहुत बुरा-भला कहा। उसे पागल बताया। लेकिन येशेज़ ने धैर्य न छोड़ा। कहते हैं, अन्त में येशेज़ ग्यात्सा लामा गोमळेन का शिष्य होकर हो रहा और आगे चलकर अपने गुरु का सबसे प्रिय शिष्य हुआ। ___ एक दूसरे हठीले शिष्य की कथा इससे भी विचित्र है। वह अपने ढङ्ग की एक ही है। ___ कर्मा दोर्ज का जन्म एक नीच कुल के घराने में हुआ था। एक गेयोक* को हैसियत से उसने छुटपन में ही एक विहार-संघ में प्रवेश किया था। जाति-वर्ण में ऊँचे कुटुम्बों के उसके साथी बड़े तिरस्कार पूर्ण भाव से उसकी हँसी उड़ाया करते थे। कर्मा दार्ज ने मुझे बतलाया कि उसने ८ वर्ष की उम्र में ही इन लोगों को किसी न किसी तरह नीचा दिखाने की प्रतिज्ञा कर ली थी।
बड़े होने पर अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उस एक ही उपाय सूझ पड़ा। उसने मन ही मन ठान लिया कि किसी दिन वह प्रसिद्ध नालजोर्पा ( जादूगर ) हागा। उसके हाथ में अद्भुत शक्ति होगी। अपने भतों और डाकिनियों की सहायता से वह एक बार अपने सब दुश्मनों का मजा चखा देगा। अगर वे उसके सामने खड़े होकर कॉपते हुए हाथों से माफो न माँगें तो उसका नाम कर्मा दोर्ज नहीं। बस, बस, उसे ठीक उपाय सझ गया है
और वह जादूगरी सीखकर ही रहेगा। -... ___ * नया चेला, जिसके गरीब माता-पिता उसका खर्च नहीं चला सकते और उसे अपने लिए किसी लामा के यहाँ कोई काम करनाघरना होता है।
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