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महाराज सम्प्रति के शिलालेख
पर विजय प्राप्त की थी, उसका बहुत बड़ा भाग उसके पिता जयदाम ने गवा दिया था। अर्थात् रुद्रदामन् जब गर्भ में था तब और इसके बाद इसकी बाल्यावस्था में उसके पिता की राज्य-ऋद्धि और वैभव की घटती के दिन थे। इसलिये उपयुक्त वर्णन रुद्रदामन के विषय में प्रयुक्त नहीं हो सकता। यदि यह माना जाय कि रुद्रदामन के गर्भ में पाने, उसका जन्म होने और बाल्यावस्था समाप्त होने तक का समय महाक्षत्रप चाष्टाण की उत्तरोत्तर उन्नति का समय था, तो भी यह तो निर्विवाद सिद्ध है कि वृद्धि का ज्वर आना रुक कर उसके पिता के समय उतार का आरम्भ हो गया था। सारांश उपयुक्त श्लाघात्मक वाक्य सर्वांश में रुद्रदामन के लिए प्रयुक्त नहीं हो सकता; किन्तु सम्राट् संप्रति के लिए वह पूरी तरह लागू हो सकता है । . . साथ ही यह वाक्य सम्राट् संप्रति के लिए प्रयुक्त करने का एक खास कारण भी है। वह यह कि उस शिलालेख की आठवीं पंक्ति में मौर्यवंशी सम्राट चन्द्रगुप्त और उसके बाद सम्राट अशोक का उल्लेख है। इसके बाद का स्थान खाली छूटा हुआ है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि एक के बाद दूसरे सम्राट के गद्दी पर बैठने का वर्णन करने की प्रथा प्रचलित होने से सम्राट अशोक के बाद गद्दी पर बैठनेवाले से संबन्धित ही उक्त वर्णन हो सकता है।
सम्राट प्रियदर्शिन् जिस प्रकार अन्य प्रान्तों पर शासन करने के लिये अपने राज्य-परिवार के खास खास व्यक्तियों
(५)ज. बो० प्रा० स० ए. मो० की मई प्रावृत्ति पुस्तक, पृ. .. और भागे।
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