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नं.१४ शास्त्री विश्वनाथ नारायणजीनो अभिप्राय.
श्रीधर्मपुर राज्यना चीफ मेडीकल ओफीसर साहेब. मु. धरमपुर. भावनगरथी ली. जोशी. विश्वनाथ नारायणजीना आशीर्वाद फुरसद वखते मान्य करशो बाद लखवानुं के आपना महाराजा श्री मोहनदेवजी तरफथी जे वर्तमान पत्रमां हिंसा बाबत सात प्रश्नो फूछयामां आव्या छे; तेमा उत्तरो हुं मारी यथा मतिथी लखु छु ते आप स्वीकारशो. ___ चालु समयमा बलेव, दशरा विगेरे तहेवारो उपर बलीदानवें कही जीवनो भोग आपवामां आवे छे ते बाबत शोधन करतां प्राचीन वखतमा चालता आवेला एक रिवाज अनुसार थतुं देखाय छे, अने ते रिवाज केटलीएक लोक रुढीने अनुसरीने अथवा देवीमतने अनुसरीने दाखल थएलो छे एम लागे छे. पण ते आर्योए मंजुर राखेल शास्त्र अनुसार नथी. देवीमतना शास्त्रो शिवाय बलेव उपर जीवहिंसानो भोग आपवो एवं कोइ शास्त्रमा छे नहीं एटलुंन नहीं पण केटलेक ठेकाणे तो राजा रजवाडामां पण ए रीवाज जणातो नथी पण दशरा वगेरे तहेवारना दिवसोमां जे भोग आपवामां आवे छे ते भोग देवीमतने अनुसरी ने आपवानो रीवाज पडेलो जणाय छे. देवीमतमां पण आ तेहेवार उपर भोग आपवोज जोइए एवं खास करीने नथी; पण पूजानी साथे देवीमतने अनुसरतो होय तो ते शास्त्रमा बतावेल क्रम प्रमाणेनी विधिए करवामां आवे तो मात्र एक ए देवीमतने एकदेशी मान्य छे अने जोइए छीए तो एक देशी प्रमाणे पण विधि अनुसार कशुं थतुं नथी. देवीमतना शास्त्रोमां देवी भागवत अने देवीरहस्य नामना जे पुस्तको छे ते सर्वदेशी नथी, एटलुंज नहीं पण ते शास्त्र प्रमाणे ते देशी मतवाळाए दीक्षा लईने ए काम की) होय अने ते पण पूजन विगेरे क्रियाथी की, होय तोज ते देशी प्रमाणे यथायोग्य गणाय. चालु काळमाए देशीनुं प्रमाण निर्बळ मनायलं छे अने जोइए छीए तो ते पण अनादिथी निर्बल छे–एके कीधुं ते प्रमाणे बीजाए पछवाडे पगढुं भरेलुं छे पण ए वगरक्रियाए गाडरीया प्रवाह (बकराना टोला)नी माफक भोग आपवानो जणाय छे. वली केटलाक शास्त्रथी एम पण जणाएलु छे के असलना वखतमा लडाइ एकाएक उठती ते वखते लडाइमां जवा सारु मूहुर्त विगेरे जोवु ते एकाएक उठती लडाइने लीधे जोइ नहीं सकातुं होवाथी दशरानो तेहवार जोके मुहूर्त तरीकेना प्रस्थाना मूकवा जेवो छे, एटले ते शुभ दिवस मूहुर्त लेवानो छे. नीचेना शास्त्रमा पण जीव हिंसाना बलीदाननू कडूं कहेल नथी. पण प्रस्थाना तरीके सीमाडे खीनडीपूजन करवा जq एवो नियम छे. जुओ रुद्रयामल, धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु, महाभारत, आ शास्त्रमा उपर प्रमाणे कहेलु छे. पण तेना घणा श्लोको होवाथी वखत टुंको होवाने लीधे अत्रे दाखल करी शक्यो नथी. सर्व देशी शास्त्रो ए के जे सर्व देशीओमां मंजुर रहेल छे. ते शास्त्रोथी जीव हिंसा न करवी एम ठरावेलुं छे. वलीदेवीमत प्रमाणे पण क्रियावगर काम हिंसारूप ठरावेलुं छे.
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