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________________ जगत्मा प्राणिमात्रने त्रण वस्तुनी प्राप्ती थाय छे. विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां परिपीडनाय ॥ खलस्य साधोर्विपरीत मेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ॥१॥ खल पुरुषो विद्यानो विवादमां उपयोग करे छे, धनथी मद करे छे अने शक्तिथी परने पीडा करे छे, पण साधुपुरुष तेथी विपरीत एटले ए त्रण वस्तुनो सदुपयोग करे छे–विद्याथी सर्वेने ज्ञान आपे छे, धनथी दान आपे छे अने शक्तिथी प्राणिमात्रनुं रक्षण करे छे. माटे हिंसा करवी ते तमाम खल अने नीच पुरुष- कृत्य छे. वास्ते कोइ प्रकारे हिंसाने धर्म मानी प्रवर्तशे तो ते अघोर एवा नरकमां पडशे एवो सर्व शास्त्रवेत्ताओनो अभिप्राय छे. अने अहिंसा एज सर्वोत्तम मत छे ने ते आश्रय करवा योग्य छे. तथास्तु" | उपरना प्रश्नोनां मारी अल्प बुद्धिथी उत्तर लख्या छे. आवा गाढ विषयमां मारे आगळ पडी लखवू योग्य नथी तो पण धर्मनी लागणीथी सत्पुरुषना मुखारविंद आगळ मारो मत निवेदन करुं छु ते अनुग्रहथी स्वीकारशो. आवा सत्कर्ममां अनेक धर्मवेत्ता शास्त्रीओना अभिप्राय आवी पहोंच्या हशे. कोइ पण प्रकारे हिंसा बंध थतां अहिंसा धर्म प्रवर्तन थशे तो हिंसाथी बचनार प्राणिओना शुभ आशीर्वाद महाराजा साहेबना राज्यने, कोशने, प्रजाने अने सर्व संपत्तिने पूर्ण फलिभूत करशे अने आ काम आलोक परलोकमां शय, अने मोक्षनुं साधनरूप छे. आ कार्य अहिंसारूप प्रवतशे तो ते अनुसारे केटलांक राज्यमा रूढी हशे ते पण निवृत्त थशे तेमां सर्वलोकथी आपने आशीर्वाद थशे. वैष्णव अने स्मृति धर्मवाला सर्व ' अहिंसा परमो धर्म' एवा वाक्यने सर्वोत्कृष्ट गणे छे. वेदमूर्ति भगवान्, शंकरना अवताररूप, सन्यासीना आदिगुरु श्रीशंकराचार्य, श्रीरामानुज संप्रदाय वाला, माध्व, राधावल्लभी, श्रीवल्लभाचार्य, श्रीस्वामीनारायणवाला, आदि सर्व अहिंसाज प्रतिपादन करे छे. तेओए सनातन वेदमां जे धर्म कह्यो छे, तेज प्रवर्तावेल छे. माटे कोइ पण धर्माचार्य तो अहिंसा- कार्यज प्रमाण करे छे छतां जे हिंसाना कार्यमा प्रवर्ते छे तेओ वेद, भागवत, गीता, मनुस्मृति अने उपर लख्या ते धर्माचार्योना प्रत्यक्ष रीते निंदक छे. वळी एवं कयुं शास्त्र छे के जेमां हिंसा करवाथी धर्म थाय एम कहेडं होय. महाराजनुं नाम परंपराथी धर्मपुरना महाराजा तरीके निर्माण थयेल छे तो तेओए पोताना शहेरना नामनो खरेखरो अर्थ आ पत्रिकाथी आरंभ्यो लागे छे ते परमात्मा संपूर्ण करशे, एवी अमो महात्माओ पासे अभिवंदना करीए छीए अने अहिंसारूप सत्कार्य सिद्ध थवा चाहिए छीए. वली विशेष के श्री जैनधर्ममां तो कोइ स्थले कोइ अंशे कोइ वाक्य हिंसा करवी तेवू छेज नहि. एटले ते मत तो हिंसा न करवी एवो अति आग्रहपूर्वक बोध करे छे माटे ते मत पण मान्य करवा लायक छ, आ कार्यमां महाराजा साहेबने पुण्यनो कांइ पार रहेशे नहि. वली तेवा कार्यमां प्रवर्ति करवा एटले हिंसा न कराववा माटे जे प्रयास करवामां आवे छे, ते पण अति उत्तम धन्यवादने पात्र छे. सुज्ञेषु किंबहुना, शांतिः मुंबइथी लि. शास्त्री रेवाशंकर मावजी दवे. मांडवीपंदवाळा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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