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नं. २
मुंबईना पचीश शास्त्रिओनो सामटो अभिप्राय. गोस्वामी श्री नृसिंहलालजी महाराजना अध्यक्षपणा नीचे स्थापित थएली
श्री सुबोधिनी सभा तरफथी आवेलो, "ता. २३ सप्तम्बर सने १८९४ना गुजराती वर्तमान पत्रना पृष्ठ १०५२ मां " देवदेवीने भोग आपवा निमित्ते थतो पशुवध " ए मथाला चर्चापत्र वाचतां तेमां बलेव अने दशरा विगेरे पर्व उपर देवी के देवने भोग आपवा निमित्तथी पशुवध थतो हतो अने थाय छे ए रूढीए शा कारणथी प्रवेश कयों छे ? तेनी हकीकत लखी तेनी अंदर सात प्रश्नो लखेला छे. ते विषे विचार करतां (रूढी) शब्द पण तेवी बाबतने लागु पडतो नथी ! केमके रूढी शब्दनो अर्थ एवो छे, एकन बाबतनी बन्ने रीति शास्त्रमा जूदी जूदी लखेली होय (जेमके सूर्यनो उदय थया पहेला होम करवो अने उदय थया पछी होम करवो ) एवी बन्ने हकीकतमाथी जे परंपराथी चालती होय ते प्रमाणरूप रूढी गणाय केम के ते शास्त्रसिद्ध छे. पण शास्त्रमा आधार न होय अने चालती होय ते अंधपरंपरानी रूढी छे तेवी रूढी मान्य गणाती नथी; तेम शास्त्र पण जे खरा धर्मने बतावे तेज शास्त्र गणाय छे. अने ते प्रमाणेन धर्म व्यवहार चालवो जोइए. पण जेनी अंदर श्रीमद्भागवतना सप्तमस्कंधमां बताव्या प्रमाणे विधर्म, परधर्म, आभास, उपमा, छलए पांच प्रकारनी अधर्मनी शाखानुप्रतिपादन होय 'ते' धर्मसंबन्धी शास्त्र गणातुं नथी. तेमज सात्विक, राजस, तामस, एवा पुराणो विगेरेमां पण भेद छे. तेमांथी तामस पुराणनी हकीकत त्याग करवा योग्य; राजस पुराणनी उपेक्षा करवा योग्य, अने सात्विक पुराणनी ग्राह्य छे. अने ते ते हकीकतो तेमज ते ते पुराण--तामस, राजस, के सात्विकपणुं ए तेमां लखेला धर्मोना प्रकार अने देवोना यजन विगेरेथी स्पष्ट जाणी शकाय तेम छे तेथी ते विषेर्नु विवेचन आस्थले लखवाथी विस्तार थाय एम धारी फक्त आ चालती बाबत विषे विचार करवा सत्यधर्माग्रही विद्वान् मंडळी मेळवतां ते ते बाबतनो नीचे प्रमाणे अभिप्राय आपे छे.
१ प्रश्न-एवा प्रकारनी पशुहिंसा करवानें कया शास्त्रमा कां छे ? उत्तर-बलेव के पशु हिंसा करवानुं कोइ प्रमाणभूत शास्त्रमा कहेलु नथी.
२ प्रश्न-जे शास्त्रमा कां होय ते शास्त्र आर्य लोकोमा सर्वमान्य गणाय छे के केम? अथवा बहुमान्य गणाय छे के केम?
उत्तर-आनो खुलासो एटलोज छे के आर्य लोकोमा सर्वमान्य कोइ शास्त्रमा तेवी बाबत लखेली नथी. प्रश्न ३-ते शास्त्र करतां पण ने शास्त्र प्रमाण वधारे बलवान् गणातुं होय एवा कोइ शास्त्रमा ते हिंसानो निषेध कयों छे के?
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