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________________ [१] नं.७ सूनी राजधानि. ___ ता. २० अकतूवर १९०६. यथायोग्य श्रीकारपूर्वक जैनश्वेताम्बर कॉन्फरन्स रेसिडंट जनरल सेक्रेट्री साहिब. आपका प्रेषित पत्र २३-९-१९०६ का प्राप्त होकर असीमाल्हाद हुवा. सो धन्यवादादनन्तर जवाबन् तेहरी रहे के इस हमारे राज्यमें असी पचास व पचपन सालसे दशहरा आदि नवरात्रेकी देवी पूजामें पाडा वगैराके बलिदानकी रस्म मेरे पिताजी साहिबके समयसे बिलकुल मोकूफ की गई है. जिसकी पुष्टिमें हमनेभी यथाशक्य सहायताकी और आई. दाके लिये भी इस कुरीतिके रोकनेमें तत्पर हुं. याने जहांतक मुमकिन् हे वकरां वगैरह वेजवान् पशुओंके वध रोकनेका उपाय भी किया जाता है और उन्की रक्षाका ख्याल रखा जाता है. और हमारी हरगीज येः मनशा नहि है के किसी भी किस्मके वेजवान् पशुकी हिंसा हो यतः यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति ॥ सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजगुप्सते ॥ अन्यच्च ॥ सर्वभूतेषु चात्मानं सर्व भूतानि चात्मनि ॥ समपश्यन् ब्रम्ह परमं याति नान्येन हेतुना ॥ अतएव । अहिंसा पूर्वको धर्मः यस्मात्सद्भिरुदाहृतः ॥ इति ॥ परन्तु हमारे इन पहाडी राज्योमें क्षत्रियजाति और विशेषतः शूद्रजातिकी आधिक्यता अनेकी वजेसे विजयादशमी आदि देवी पूजाके अतिरिक्त विवाहाऽऽदिक उत्सवोमेंभी वक्तन् फरवक्तंन् बकरे आदि भक्ष्य जीवोंका वध कर्ते है. इस्को उक्त जातीय शस्त्रविद्याके संबंधों स्वजातीय धर्मख्याल. कर्ते है. इस्के रोकनेपर ये उजर कर्ते हैं के यदि इस रस्मको बंद किया जायगा तो शस्त्रसंचालन विद्याके त्यागसे हम और आइंदा हमारी सन्तती ऐसी वुजदिल हो जायगी के भालू वगेरह जंगली दरिंदे जानवरानसे अपनी मवेशी और खेतीवाडी जिसपर हमारी जिंदगीका दार व मदार है रक्षा कर्नेमें असमर्थ हो जायगी. सो यदि जीवहिंसा वंद कर्नेके लिये उक्त प्रजासे वलात् शस्त्र लेनेकी चेष्टा की जावे तो इस्से प्रत्यक्षतः तीन हानि जे होती हैं ( १) स्वजातिद्वेष, (२) प्रजाद्वेष (३) प्रजादुःख अगर इस्को एक प्रकारका प्रजानाशभी कहा जाय तो इस्मे व्याजोक्ति और अत्युक्ति दोष नहीं है. क्योंके शस्त्रोंके ही वलसे पहाडी प्रजागण दरिंदा व गुजन्दा जंगली जानवरानसे अपनी जान और विशेषतः खेतोंके अनाजकी रक्षा कर्ते हैं. परन्तु दृढ आशा की जासक्ती है के ज्यों ज्यौं विद्याका प्रचार वृद्धिको प्राप्त होता जायगा और साथ साथही अहिंसा परमोधर्मः । और योऽतियस्य यदा मां समुभयोः पश्यतान्तरम् ॥ एकस्य क्षणिका प्रीतिरन्यः प्राणैर्विमुच्यते ॥ १ ॥ ऐसे ऐसे भयोत्पादक हिंसानिवृत्तिके सदुपदेशभी होते रहेंगे तो स्वतः प्रजावर्गके मनमें दयाका अंकुर उत्पन्न होकर धीरे धीरे विद्युत्सरूप धारण करके इसकुं प्रथाके हिंसारूप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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