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करे के केहेता ने मारी नाखीने तारी मालमता लेवाना उद्योगमां छे. अने तारी बालविधवा बेन छे ते गर्भपात करे छे अने नांनपणथो तारा बापविनानी थयेली तारी मा पण एज कर्म करे छे तो पण तेमनां नाक, कान कापवानुं केम कहेतो नथी. माटे हवे तो तारांज नाक, कान कापवां योग्य छे. अर्थात् तारुं स्वजन कुटुंब जे खरं दोषनुं मत छेतेने शिक्षा करावतो तथी. अने हुं जेवा अनाथ पामर निरपराधी जीवने तु तत्पर छे तेथी जो नाक कान छेदवां योग्य शिक्षा करवा राजा इछता होय तो तनेज करवी घटेछे. ३
मारवाने विषे
आ प्रकारनां वचन सांभळी राजाए पशुहिंसानो त्याग करी हिंसक ब्राह्मणनुं मुख पण न जो एवो नियम लेई तत्वज्ञानीनो समागम करी काले करीने मोक्ष पाम्यो. एवी वात वृद्धपरंपराथी सांभळवामां आवी छे आ कालमां पण केटलाक विचारवा लायक पुरुषो कुकडां विगेरे पशओने कांईपण क्षल कर्या विना माताने अर्पण करी तेने कोई मारे नहि एवा बंदोबस्तथी रमता मुकेछे. हवे आ अहिंसा निबंधनों आरंभ वेदना प्रमाण आपी कर्यो हतो तेमनी समाप्ति पण वेदना प्रमाणथी करुंकुं. सर्व प्रमाणमां वेदप्रमाण मुख्य छे ( वेद प्रमाणम् ) एम प्रसिद्ध छे माटे अने ते वेदमां पण सामवेद मुख्य छे केमके भगव - द्गीतामां श्रीकृष्ण भगवाने कहयुं छे केः
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वेदानां सामवेदोऽहं ।
वेद मध्ये सामवेद ए माई स्वरूप छे, ते सामवेदनुं उपनिषत् कहेतां साररूप ( केनोपनिषद् - तस्यैव अन्यन्नाम तलवरोपनिषद् ) छे. ते उपनिषद्ना चोथा खंडमां कहयुं छे के
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योवा एता मेवं वेदापहत्य पाप्मान मनंते स्वर्गे लोके ज्येये प्रति तिष्ठति ॥
हिंसादि पापनो परिहार करवाथी स्वर्गादिक सुख भोगवायं छे. पण पाप करी सुखी थवातुं नथी. एवो वेदादिक सर्व शास्त्रनो अभिप्राय समजी अज्ञानपणांमांथी चाली आवती हिंसा करवा रूप अंधपरंपरानो परित्याग करवो.
शास्त्रिणा रामचंद्रेण दीनानाथ समुद्भुवा || अहिंसायाः प्रबंधोयं रचितोsस्तु सतांमुदे ॥ १ ॥
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