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कारण माटे मनुष्ये पोतानी उपमावडे जोइ बीजापर दया राखवी. वळी कां छे के प्राणदानात्परं दानं न भूतं न भविष्यति ।। नह्यात्मनः प्रियतरं किंचिदस्तीह निश्चितम् ।। अर्थ-प्राणदानथी बीजुं अधिक श्रेष्ठदान आज सुधी थयुं नथी अने थशे पण नहीं. कारण के आत्माथी बीजुं कांइ पण अधिक प्रिय छे ज नहीं. ए निश्चय छे. तथा क्युं छे के अनिष्टं सर्व भूतानां मरणं नाम भारत, मृत्युकालेहि भूतानां सद्यो भवति वेपथुः ।। अर्थ- सर्व प्राणिमात्रने मृत्यु महा अनिष्ट छे; कारण के मृत्युकालमां प्राणियोने तत्काळ कंप थाय छे. माटे बिचारा गरीब निरपराधी प्राणियोनी जींदगी पर्यंतनुं सुख तोडी नांख एनाथी बीजुं कोई पापाचरण नथी, वळी प्राणियोनी सर्वे जातिओमां आनंद रहेलो छेज जेथी तेमने पण मनुष्यनी पेठे घणुं जीववानी होंश होय छे, अने तेओ पोतपोताना कुटुंबमां घणो स्नेह बांधे छे; जेथी एक बीजाने वियोग थतां तेओ अत्यंत दुःखी थाय छे. एम आपणे प्रत्यक्ष अनुभवथी जोईए तो आपणा अनुभवमां पण आवे छे. शांति पर्व मोक्ष धर्म - अध्याय ८८ मां धर्मनुं एवं लक्षण आपेलुं छे के सर्वभूतनुं हित तथा सर्वभूत साथे मित्रभाव राखवो ए धर्म प्राचीन छे. सर्व प्राणियोने अभय आपे छे; तेज अभय पामे छे. तप करवाथी, यज्ञ करवाथी, दान करवाथी, अने वेदांत वाक्योनुं चिंतवन करवाथी, जे जे फळ प्राप्त थाय छे, ते फळ एक अभयदानरूप धर्म करवाथी पण प्राप्त थाय छे, जे पुरुष सर्व प्राणियोने आलोकमां अभयदानरूपी दक्षिणा आपे छे, तेने सर्व यज्ञनुं फळ प्राप्त थईने ते पण अभय दक्षणा पामे छे. ऋषिओए अने योगीओए नहुष राजाने एम कह्युं छे के, तें गायने हणी ते पोतानी माने हण्या बरोबर पाप कर्यु छे, तें प्रजापतिने हण्या बरोबर पाप कर्तुं छे. - इत्यादि, इत्यादि, अध्याय ८९ मां अहिंसानी स्तुति अने हिंसानी निंदा विषे प्रजाना उपर दयाअर्थे विचख्यु राजाए कह्युं छे. अध्याय ९२ मां- तुलाधारे जाजलीने अहिंसाधर्म कहेल छे. अध्याय ९७ मां- हिंसा करवी ए यज्ञ कर्म नथी - हिंसात्मक यज्ञ करवाथी सत्यनामे ब्राह्मणनुं मोटुं तप नाश पाम्युं. अध्याय ९३ मां प्राणियोनी हिंसा कर्या विना एैश्वर्य प्राप्त थाय एवो धर्म गृहस्थने अने योगीने कल्याणकारी होय ते कह्यो छे. अध्याय ११७ मां जे हिंसायुक्त नथी ते आर्य पुरुषनुं सत्पुरुषो पूजन करे छे. पातंजल योगदर्शन साधनपाद सू. ३० तथा ३२.
अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ॥ ३० ॥ शौचसंतोषतपस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः || ३२ || अर्थ:-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अने अपरिग्रह एयम छे.॥३०॥ पवित्रता, संतोष, तप, स्वाध्याय अने ईश्वरप्रणिधान ए नियम छे. सूत्र ॥ ३१ ॥ तथा सूत्र ३२ मां कहेल छे के-सू० जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ॥ ३१ ॥ अर्थः- जाति, देश, काळ अने समयथी ते यमनो भंग न थतां जो सर्व अवस्थामां ते सुस्थिर रहे तो ते महाव्रत कहेवाय छे. पछी सूत्र ३३ वितर्कबाधने प्रतिपक्षभावनम् ॥ ३६ ॥
अर्थ-वितर्कनां नाशमां तेना प्रतिपक्षनी भावना हेतु छे. ॥ ३३ ॥ तथा सूत्र ३४ वितर्का हिंसादयः कृतकारितानुमोदिता लोभक्रोधमोहपूर्वका मृदुमध्याधिमात्रा दुःखाज्ञानानंतफला
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