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________________ ८७ करके सत्यस्वरूप जो परम उदारपद, ऐसा जो ब्रह्मपद उसमें स्थित होना. ये प्रबुद्धपणा है ऐसा रहनेसें सर्व कर्मपर मेख मारी जाती है. अर्थात् उस पुरुषके सर्वकर्म सहेज ई. श्वरार्पण होते. ये विष्णु होकर विष्णुकी आराधना करे तब पूजा सफल होती है. और आपण आपका विचार करके ब्रह्मपद जाना नहीं और विष्णुकी पूजा करता है. और फल ईश्वगर्पण करता है. तो उसके कर्मपर मेख नहीं मारे जाती है. उसकुं पितृलोक प्राप्त होता ये वेदकी श्रुति कहती है. कर्मणा पितृलोकः-अर्थात् ईश्वरकुं ना जानके, जो कर्म ईश्वरार्पण करता है. उसकुं पितृलोक प्राप्त होता है. कित्येक काल पीछे फेर गिरते हैं. और जन्मसे जन्मांतर भटके रहते हैं. कभी राजा बनता है. कभी रंक बनता है कबी पशु बनता है. ऐसा घटीयंत्रकी नाई भ्रमता है. और जो आपणे आपका विचार करके, सत्यस्वरूप आत्माकं जानके उस आत्माके अनुसंधानसे कर्म करता है. तो उस पुरुषकु कर्म बंधायमान नहीं होते. उसकु परमपद जो अविनाशी पद है सो प्राप्त होता है. जन्ममरण ऋषियेत्रमें आता नहीं. ये सिद्धान्त है. तो ईश्वरकुं जानना कैसे होता है सो कहते है. की आपना आप विचार करनेसें. ईश्वर जाना जाता है. और न तप करी, न दान करी, न यज्ञ करी, न पुत्र धन करी, न होमादि क्रिया करी, न वर करी, न शाप करी आत्मा जाननेमें आता है. केवल आपना आप विचाररूपी पुरुषार्थ करके आत्मा जाननेमें आवता है. अर्थात् मै देहे हुंकी मनरूप हुंकी बुद्धिरूप हुं कीचित् अहंकार रूप हुं के और कोई हुँ ऐसा विचार करनेसें ये सब असत्य और जड दिखते है. और एक चैतन्यस्वरूप सत्य है ऐसा सिद्धान्त होता है. जब ऐसे सत्यस्वरूप आत्माकुं जानके जो पुरुष उसमे स्थित हुवा है तो उस पुरुषके स्वक्रिया कर्म, स्वधर्म, परधर्म, सत्य, असत्य, आस्ति, नास्ति, शुभ, अशुभ, सुख, दुःख, हर्ष, शोक, भला, बुरा, पाप, पुण्यादि सर्व कर्म मिथ्या असत्य हो जाते है. क्यों की दृश्य, अदृश्य रूपीजगत, है नहीं. तो जगतके कर्म कांह. सत्यस्वरूप मात्माके ठीकाने जग है नहीं. ए असत्य भांतिरूप है तो हे राजा, तुम भी आपने स्वरूपक जानके सब पदार्थ ते नीराग हो जो वस्तुहीन होवे तिसकी भास्था करनी क्या है यह प्रपंच जो दृष्ट आता है.. इसके भासने और न भासनेमें तुमकुं क्या खेद है. : तुम निर्विघ्न होकर भात्मतत्वमें स्थित रहो. ऐसा जानो की जगत है भी और नहीं भी, यह निश्चय करी तुम असंग रहो. यह चल अचल दृष्टि मानेमे तुमकु क्या खेद है. तुम तो ससस्वरूप चेतन तत्वही है. राजा, यह जगत न आदि है, न अनादि है. केवल चेतनका जो चित संचित्त मनरूप है तिसके करेण करीके भासता है. वास्तवमें कछु नहीं यह जगत किसी कतनि कीया नहीं न कीसी अकर्ताने कीया नहीं.. केवल. भाभासरूप है. मामासमें कों भकर्ता पदकुं प्राप्त भया है. ए कृत्रिमरूप है कीसीका कीया तो नहीं.. इस साय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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