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नाश थाय छे. ए प्रमाणे कालीपुराण ब्रह्मवैवर्तपुराण तथा नारद पुराणमां कहेल छे, माटे दशरा तथा बळेवने दिवसे बलि आपवानो निषेध छे ते दिवसे पशुवध न करवो.
प्र. २. जे शास्त्रमा का होय ते शास्त्र आर्य लोकोमा सर्वमान्य गणाय छे के केम ? अथवा बहुमान्य गणाय छे के केम?
उत्तर. जे शास्त्रमा कहेल छे ते शास्त्र आर्य लोकोमा सर्वमान्य गणातां नथी, तथा बहुमान्य पण गणातां नथी. छेवटनी कनिष्ट पायरीनां छे. ते आगळ दर्शावेल शब्द प्रमाणना सर्वमान्य ग्रंथोथी जाणशो के ते सर्वमान्य नथी.
प्र. ३. ते शास्त्र करतां पण जे शास्त्रनुं प्रमाण वधारे बलवान् गणातुं होय एवां कोइ शास्त्रमा ते हिंसानो निषेध कर्यो छे के केम?
उत्तर. ते शास्त्र करतां पण जे शास्त्रनुं प्रमाण वधारे बळवान् होय एवा घणा शास्त्रोमां ते हिंसानो निषेध छे. एटलुंन नहीं पण तेने ते शास्त्रोमां पण निषेध करेल छे. अने ते सर्वे नीचे प्रमाणे छे. पहेलां तेमना शास्त्रोनोज निषेध लखीए छीए.
मार्कंडेय पुराणगत चंडीपाठ कवच १५ श्लोक १९-२०-२१-देवीदेव प्रत्ये कहे छे. सर्व ममैतन्माहात्म्यं मम सन्निधिकारकम् पशुपुष्यार्घ धुपश्च, गंधदीपै स्तथोत्तमैः ॥ १९ ॥ विप्राणां भोजनोंमैः प्रोक्षणीयैरहनिशं ॥ अन्यैश्च विविधोंगेः प्रदानैवत्सरेण या ॥ २०॥ प्रीतिक्रियते सास्मिन्सकृत्सुचरिते श्रुते श्रुतं हरति पापानि तथारोग्यं प्रयच्छति ॥ २१ ॥ अर्थ-देवी देव प्रत्ये कहे छे के आ सर्व माहात्म्य (चंडीपाठ) मारूं सन्निधान करनार छे, माटे पशुबलि, जळ, दुग्ध, दुर्वाग्र, दहीं, अक्षत, तील, यव, तथा हिरण्यगर्भ एवा आठ पदार्थ युक्त अर्घ्य तथा उत्तम सुगंधित गंध, पुष्प, धूप, दीप वगैरे अने ब्रह्मभोजन होम प्रति दिवसे पंचामृतनो अभिषेक तथा अनेक प्रकारनां पुष्पोनी माळाओ वगेरे भोगो मने तथा मारा उद्देशथी ब्राह्मणोने वस्त्रालंकारादि दानो आपवा पूर्वक एक वर्ष पर्यंत मारी पूजा करीने जेओ मारी प्रीति उत्पन्न करे छे, ते प्रीति मारुं आ सुचरित्र (चंडीपाठ) एकवार श्रवण करवाथी मने पहोंचे छे. कारण के आ चरित्र मात्र सांभळवाथीन सकळ पापोनुं हरण करे छे, तथा शरीरने विषे आरोग्यता आपे छे ॥२१॥ तथा कालीपुराणमां कहे छे के-नंदायां ज्वलते वन्हिः पूर्णायां पशुघातनम् ॥ भद्रायां गोकुले क्रीडा तत्र राज्यं विनश्यति ॥ अर्थ-ज्यां, नंदा कहेतां पडवे छठ्ठने एकादशीमां होली प्रगटाय छे, तथा पूर्णा कहेतां पांचम, दशम, अने पुनेमने दिवसे बलि पशुधात थाय छे. अने भद्रा कहेतां बीज, सातम, ने बारशने दिवसे जन्माष्टमीनो उत्सव थाय छे. त्यां राज नाश पामे छे आ वाक्य ब्रह्म वैवर्त तथा नारदादिक पुराणमां पण छे.
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