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अर्थ-मर्नु, अत्रि, विष्णु, होरीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगिरा, संवत, शातातप पराशर, गौतम, शंखें, दक्ष, आपस्तंब , यमें, बृहस्पति, व्यास, कात्यायन, देवते, नारदै, इत्यादिक उपर बतावेल सर्वज्ञ थया छे. तेमणे वेदने अनुसार स्मृतिनामे ग्रंथो कर्या छे. तेने धर्मशास्त्र कहे छे. अने ते तेमना नामथी ओळखाय छे. तेम सांख्यशास्त्र, योगशास्त्र, ए पण धर्मशास्त्रनां अंतर्भूत छे. हवे आमां पहेले नंबरे प्रमाणभूत वेद, पछी स्मृति, पछी शास्त्र; पछी इतिहास अने पछी पुराण, पछी, अन्य ग्रंथो प्रमाण भूत छे:-श्रुतिस्मृतिपुराणेषु विरुद्धेषु परस्परम् इत्यादि-अर्थ:-श्रुति अने स्मृतिनो विरोध आवे तो श्रुति बळवान् छे. अने स्मृति तथा आचारनो विरोध आवे तो स्मृति बळवान् छे. __ए प्रमाणे शब्दप्रमाणना ग्रंथो जे सर्व मान्य छ ते बतावीने हवे ते प्रश्नोना उत्तर पेहेला शब्दप्रमाणथी आपीए छीए अने ते शब्द प्रमाणमां पण पहेलां जे शास्त्रमा वधनुं कहेलुं छे, तेज शास्रोनां तेना विरुद्धना प्रमाण आपीने पछी एक एकथी विशेष बळवान् प्रमाण एक पछी एक यथानुक्रम प्रमाणे आ सार्थ दर्शावेल छे.
प्रश्नो. प्र०-१ बळेव, दशरा विगेरे पर्वोपर देवीके देवने भोग आपवाना निमित्तथी पशुवध (पाडा, बकरां विगैरे प्राणीनो भोग) एवा प्रकारनी पशुहिंसा करवानें क्या शास्त्रमा कर्तुं छे ए पेहेलो प्रश्न छे.
उत्तरः-मार्कंडेय पुराणगत, चंडीपाठ कवच १८ मां (श्लोक २७) सुरथ राजा प्रत्ये मार्कडेय ऋषि कहे छे. रुधिराक्तेनबलिना मांसेन सुरया नृप, माणामाचमनीयेन चंदनेन सुगंधिना ॥२७॥ अर्थः-हे राजा रक्तप्रोक्षण करेला अन्ननुं बलि, मांस तथा मद्यपण ए चंडीकाने समर्पण करवां, पछी नमस्कार, आचमन, सुगंधयुक्त चंदन इत्यादिथी पुजन करवू. तथा देवीपुराणमां कहेल छे के. अश्विने पूजयित्वा तु अर्धरात्रेष्टमीषुच, घातयंतिपशून् भक्त्या ते भवंति महाबलाः॥ तथा-पशुघातश्चकर्तव्यो, गवयाजवंधस्तथा ॥(वळी)तत्राश्वपेषछागमहिषस्वमांसाना मुत्तरोत्तरमाशस्त्यं फलविशेषश्च अर्थ-देवीपुराणमां कां छे के आसोमासमां अष्टमीने दिवसे अर्ध रात्रे जे माता- पूजन करीने भक्तिवडे करीने पशुने मारे छे; ते महाबळवान् थाय छे. पशुघात करवा योग्य छे. रोझ अने बकरानो वध ते पण करवा योग्य छे. बलिदानमां अश्व, घेटो, बकरो, पाडो, ने पोतानुं मांस एम उत्तरोत्तर श्रेष्ठ छे ने तेनुं फळ पण उत्तरोत्तर श्रेष्ठ छे.
ए सिवाय कालीपुराण तथा बीजा वामतंत्रना ग्रंथोमां घणे ठेकाणे छे. पण दशरा तया बळेवने दिवसे बलि आपवानो निषेध नीचे प्रमाणे छे.-नंदायां ज्वलते वन्हिः पूर्णायां पशुघातनम्, भद्रायां गोकुले क्रीडा, तत्रराज्यं विनश्यति" ।
अर्थ :-पडवे, छठ्ठ, अने एकादशी ए नंदा तिथि छे. ते दिवसे जो होली प्रगटे छे तो, तथा पांचम, दशम, अने पूनम ए पूर्णातिथिने दिवसे पशुघात पशुनो बलि आपे तो, अने बीज, सातमने बारस ए भद्रा तिथिमां जन्माष्टमीनो उत्सव करे तो, जे देशमा ए प्रमाणे थाय त्यां राजनो
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