________________
- भो भो प्रजापते राजन् पशून्पश्य त्वयाध्वरे
संज्ञापितान् जीवसंघान् निघृणेन संहस्रशः अर्थः—हे प्रजापति राजन् ! दयारहित एवो तुं तेणे यज्ञमां मायाँ जे हजारो पशु तथा ते यज्ञमा मार्या जे बीजी जातना केटलाक जीवसमूह तेने मारा बताववाथी नजरे जो.
एते त्वां संप्रतीक्ष्यन्ते स्मरंतो वैशसं तव
संपरेतमयःकूटैश्छिदंत्युत्थितमन्यवः अर्थः-यज्ञमां मार्यो जे पशुओं तथा बीजा जीवना समूहो ते सघलां तारा वैरने संभारता तारी वाट. जोईने उभा छे. आ देहनो त्याग करीने परलोकमां गयो जे तुं तेने देखीने जेओने घणो क्रोध थयो छे. एवां सर्व पशुओ तथा बीजा जीवना समूहो लोढाने कुवाडे करीने तने छेदशे ( कापशे ). नारदपंचरात्रवचनम्.
श्रुतिर्वदात विश्वस्य जननीव हितं सदा
कस्यापि द्रोहजनकं न वक्ति प्रभुतत्परा अर्थः-समर्थ परम दयालु मूर्ति ईश्वरने प्रतिपादन करनारी जे श्रुति ते मातानी पेठे निरंतर जगतना हीतनेज कहे छे. पण कोई जीवनो द्रोह थाय, तेवु वचन नथी बोलती. माटे वेदमा हिंसा करवानें कोई जगाए कह्यु नथी. __न तच्छास्त्रं तु यच्छास्त्रं वक्ति हिंसा मनर्थदाम
यतो भवात संसारः सर्वानर्थपरंपरः अर्थ:-अनर्थने आपनारी हिंसाचं जे शास्त्र प्रतिपादन करतुं होय. तो ते शास्त्र मान्य गणातुं नधी. समग्र दुःखनी परंपरावालो जे संसार तेमा वारंवारज मृत्युरूपी प्रवाह जीवनी हिंसाथी. थाय छे. जे शास्त्र हिंसानू प्रतिपादन करतुं होय तेने तो शास्त्रज मानवू नथी. भारते भीष्मवचनम्,
सर्वकर्मखऽहिंसां वै धर्मात्मा मनुरब्रवीत्
कामकाराद्विहिंसति बहिर्वेद्यां पशूनराः अर्थ:-धर्मात्मा मनु ते सर्व कर्ममां कोई प्राणिनी हिंसा करवी नहीं,एम कहेता भाव्या छे. मांसना खानारा मांस खावानी इच्छाथी यज्ञशालानी बहार पशुलोने मारे छे, ते केवल रसास्वाद माटैज छे.. पण शास्त्र प्रतिपाय नथी.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com