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________________ नं. १४. वैद्य रघुनाथ इंद्रजीनो अभिप्राय. हिंसा न करवाथी सारं छे, एवां वाक्य श्रीमद्भगवद्गीता तथा श्रीभागवतमा छे. जेने -मोटा मोटा भाचार्यो प्रमाण माने छे. अने जेनी उपर टीकाकारे गीताजीमा अहिंसासत्यमस्तेयमित्यादि वाक्यो लखलां छे, ने श्रीमद्भागवतमां पण एकादश स्कंधमां विभूति अध्यायमां लखे छे जे वृताना मविहिंसनं ने जे उपर आज कायदा चाले छे, ते स्मृतिमा पण अहिंसा 'परमोधर्मः लखे छे माटे हिंसा न करवाथी श्रेय छे. ने हिंसा करवानुं देवीपुराण अथवा कालिकापुराण एमां लख्यु हशे, ते काई सदाचार के आर्यधर्ममां मानवा लायक छे नहीं. तेना उपासक तेने माने छे. ने जे पाडा, बकरानो वध करे छे, ते रूढिथी करता हशे. कारणके कोई सारा ग्रन्थमां एवं लख्यु नथी. जे हिंसा न करवाथी नुकसान थाय पण हिंसा जेने वालि छ तेवा केटलांक मनुष्य वहेम नांखे छे. जे दरसाल करता होय ते न करवाथी नुकसान थाव ए बहेमथी मनुष्य डरता हशे. पण कोई सारा प्रन्थमां हिंसा न करवाथी नुकसान थाय एवं मारा जाणवामां आव्यु नथी. लिं. जुनागना. वैद्य, रघुनाथ इंद्रजी प्रश्नोरानागर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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