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सुख ने दुःख, पाप ने पुण्य, धर्म ने अधर्म, धर्मी ने अधर्मी, साचो ने जुठो, जो ए प्रमाणे द्वंद्वाकृति न होय तो सारं नरसुं जणाय नहीं. माटे ए एक बीजाने जणावे छे तेटला माटे ए पण उपयोगी होइने ए प्रमाणे बनेल छे तो तेपण ठीक छे. 'जुठो साचाने बतावे छे तथा साचो जुठाने बतावे छे तेमन वळी धर्मी अधर्मीने बतावे छे अने अधर्मीथी धर्मी जणाय छे, माटे ए पण एक समजणथी बनेल छे. आ उपरथी सर्वे सुज्ञोने लक्षमां आव्युं हशे के पशुवध महानिषिद्ध छे माटे न करवो. आटळु हवे सुज्ञोने बहु छे ने अणसमजुने हजारो ग्रंथोथी उपदेश ते काइ नथी ने समजुने सहेन इसारो बस छे. एम धारी हुं आ विषे विशेष लखवू बंध करुं छु. जेने जेम गमे तेम कहे. बे रस्ता छे. शुभ ने अशुभना. ते बे बताव्या छे, तेमाथी जे जेने जोइए ते उपाडी ले. आ विषेनुं लखवा बेशीए तो ते एक मोटो ग्रंथ बने माटे टुंकामां ते, मात्र दिग्दर्शन करावी वधु लंबावतो नथी. आ अनुमान अने प्रत्यक्ष प्रमाणो आप्यां छे. तेमां तमारा साते प्रश्नोना उत्तर आवी जाय छे.
___ छतां दिग्दर्शनरूपे तेना उत्तरो पण लडें छ. ए प्रश्नोना उत्तर आपवा माटे पहेलां प्रमाण ग्रंथोनां नाम जणाववां जोइए. प्रमाण विना कोई वस्तु सिद्ध थती नथी. माटे सर्व मान्य प्रमाणो नीचे प्रमाणे योगवासिष्टना मुमुक्षु प्रकरणना अढारमा सर्गमां वसिष्ट महामुनिये श्रीरामने कह्यां छे. "अपि पौरुष मादेयं, शास्त्रं चेयुक्तिबोधकम् । अन्यत्त्वामपि त्याज्यं, भाव्यं न्यायैकसेविना ॥ युक्तियुक्त मुपादेयं, वचनं बालकादपि, अन्य तृणमिव त्याज्य, मप्युक्तं परमेष्टिना ।। योऽस्मत्तातस्य कूपोऽय, मिति कौपं पिबेतू पयः । त्यक्त्वा गांगं पुरःस्थं तं, कोऽनुशास्त्यतिरागिणम्" ॥ __ अर्थ-अपक्षपाती मनुष्ये युक्तिबोधक शास्त्र साधारण पुरुषे रचेलु होय तथापि स्वीकारवू,पण युक्तिविनानु,ऋषिये कहेलुं होय तोय पण त्याग करवू. केम के युक्तियुक्त वचन बाळकथी पण ग्रहण करवा लायक छे ने युक्ति विनानुं कदि प्रजापतिये कहेलु तोपण तृणनी पेठे त्याग करवा लायक छे. एम छतां पण जे अमारा बापनो कुवो छे एवा हठथी पासे रहेढुं गंगार्नु मीठु जल मूकी कुवानुं खारु पाणी पीए तेवा अतिरागीने कोण उपदेश करे ?
युक्ति-षट् लिंगथी ग्रंथनां तात्पर्य (रहस्य)नो निर्णय करवो तेने युक्ति कहे छे. षट्लिंग एटले षट् प्रमाण-ते आ प्रमाणे छे. प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति, अने अभाव. आ प्रमाणोमां कोई एक प्रत्यक्षनेन माने छे. कोई प्रत्यक्ष अने अनुमान एम बे भाने छे. कोई त्रण माने छे कोई चार माने छे. पूर्वमीमांसा तथा उत्तर मीमांसावाळा छ प्रमाण माने छे तथा बीजा आठ प्रमाण माने छे. पण ते बधानो समावेश घणुं करी त्रण प्रमाणमां थाय छे. पातंजल योगदर्शनमां कां छे के "प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि"(प्रथम समाधिपादनुं सूत्र ७ मुं) अर्थ-प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम (शब्दप्रमाण), ए प्रमाणे छे. यथार्थ ज्ञाननू ने करण होय ते प्रमाण कहेवाय छे. इन्द्रियसन्निकर्षद्वारा
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