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नं.११. खंषातवाळा शास्त्री छगनलाल केशवलालनो अभिप्राय.
ता. २८-९-९४ भादरवा वदी १४.
प्रश्न १ नो उत्तर. एवा प्रकारनी पशुहिंसा करवान चंडीपाठ तथा देवीपुराण विगेरेमा कयुं छे ते विपे स्थल चंडीपाठनो अध्याय बारमां श्लोक १९ मां तथा कवच १८ ने अध्याय १५ विगेरेमा जओ.
प्रश्न २ नो उत्तर. जे शास्त्रमा पशुवध विगैरे अयोग्य करवानुं कयुं होय ते शास्त्र आर्यलोकमां सर्वमान्य गणाय नहीं, तेम बहुमान्य पण गणाय नहीं. कारण के तेवा दुष्ट लोकोए ते मान्य गणेला छे. एटलुज नहीं पण एवां शास्त्र जाणे तेवाज पुरुषोए तेवा रागथी बनावेल के. एम नीचेना वचनो स्पष्ट करे छे. माटे तेने सर्वमान्य अथवा बहुमान्य केम गणाय.
सर्वमान्य बहुमान्य न गणाय ते विषे भाधार नीचे.
धर्मसिन्धु परिच्छेदक पत्र ११९ पृष्ठ १ पंक्ति २ मा मद्यभक्षादिपतिपादकवामाद्यानमस्यतुनमान्यता ए वचन मद्य भक्षादिक केनार शास्त्रने तथा वाममार्गना शास्त्रने प्रमाणता कबुल करतुं नथी तो चंडिपाठना १८ मां कवचमां श्लोक २८ मामां रुधिरा ए वचन मार्कंडेयपुराण- नथी कारण के रहस्य मार्केडेयपुराणमां छे नहीं, मार्कंडेयपुराणमां तो फक्त १३ अध्याय छे. माटे ते रहस्य तांत्रिक छे ते बलिष्ट गणाय नहीं भ. १२ श्लो. १९ मां पशुपुष्पार्ध ए वचन पण पशुवध करवायूँ कहेतुं नथी. ए तो एम बतावे के के एवा उपचारथी एक परस दिवस सुधी पूजन करे ने देवी प्रसन थाय ते प्रसन्नता चंडिपाठ एकवार सांभले तेथी थाय ते आगल खुल्लु लख्युं छे के सकृदुचरितेश्रुते भने ते लोकनो संबंध पण त्या सुधीज छे. माटे ते वचननो तात्पर्य स्तुति श्रवण करवामां छे. वरी भाग्रहथी तेवा वचनोने न स्वीकार करवा सारु प्रमाणो
मोक्षधर्म भारते अ. २६५ ५. १३१.
अव्यवस्थितमर्यादेविडेनास्तिकैनरैः ॥ संशयात्माभिरव्यके हिंसासमनुवर्णिता ॥ सर्वकर्मस्वहिंसां हि धर्मात्मामनुरब्रवीत् ॥ कामकाराद्विहिंसति बहिर्वेद्यां पशून् नराः ॥ टीका ॥ बहिर्वेपा
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