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छे, चक्षुयी रूप जोवाय छे, चामंडीथी स्पर्श जणाय छे, अने कानथी शब्द श्रवण थाय छे. पांच प्राण(प्राणथी श्वासोश्वास लेवाय छे अने अपानथी मळ त्याग कराय छे, उदानथी हेडकी होडकार स्वप्नां आवे छे, समान सर्व नाडीओमां रस पहोंचाडे छे, व्यान सर्वांगन्यापी रहेल छे.) मन संकल्प विकल्प करे छे, बुद्धि निश्चय करे छे. चित्तथी चितवन तथा स्मरण (याद आवg) थाय छे. अहंकारथी अमिमान भराय छे, ए एकन अंतःकरणना चार भाग छे, आ अंतःकरणनी शुभाशुभ वृत्तिओ थाय छे. अने तेथी सुखदुःख प्राप्त थाय छे..
मुखथी जे खाइए पीए ते जठराग्नि तेने पचावे छे अने त्यांथी समान वायु ते रस सर्व नाडीओमां पहोंचांडे छे. अने तेथी अंतःकरण- पोषण थाय छे. जेवो जेवो खोराक खाधामां आवे छे तेवी तेवी वृत्ति थाय छे. अंतःकरण रसना द्वारा स्वाद जाणे छे, घ्राणद्वारा गंध जाणे छे, चक्षुद्वारा रूप जुए छे, नाकद्वारा स्पर्श जाणे छे, श्रवणेन्द्रियद्वारा शब्द सांभळे छे. अने शुभ वा अशुभ नेवा ग्रहण थाय ते प्रमाणे अंतःकरणनी वृत्ति शुभ अशुभ थाय छे. जमणो हाथ प्रबळ, डाबो हाथ निर्बळ, जमणो पग प्रबळ, डाबो पग निर्बळ, जमणी आंख प्रबळ, डाबी आंख निर्बळ, जमणो कान प्रबळ, डाबो कान निर्बळ वगेरे प्रबळ निर्बळ छे.
वृत्तिओ प्रबळ निर्बळ थाय छे अने सारो खोराक होय तो सारी वृत्ति प्रबळ थाय अने नठारो खोराक होय तो नठारी वृत्ति प्रबळ थाय तथा सुख दुःखादि फळ पण ते न प्रमाणे प्राप्त थाय छे. प्रबळ निर्बळने दवावे छे इत्यादि आपणे प्रत्यक्ष अनुभवीए छईए.
आ इन्द्रियो अंतःकरणादि ईश्वरनी संनिधियी चैतन्य छ, नहीं तो जड छे. जुओ मुडदाल शरीरमां ईश्वर जे इन्द्रिय अंतःकरणादि लईने जे जे नग्योए छे तेनां ते ते प्रमाणे जुदा जुदां नाम उपाधिभेदे आ प्रमाणे छे. पगे उपेंद्र, हाथे इंद्र, शिश्ने प्रजापति, गुदे यम, मुख अग्नि, वाणी सरस्वती (वेद), घाण अश्वनि कुमार, रसना वरुण, चक्षु सूर्य चंद्र, त्वक् मरुत्, श्रवणे दिपाल, प्राणे वायु, मने चंद्रमा, बुद्धि ब्रह्मा, चित्त नारायण, अहंकारे रुद्र, तथा शुभ वृत्ति ए पालक, अशुभ वृत्तिए संहारक ए प्रमाणेनां नामो छे. आ बताब्युं ते व्यष्टि स्थूल तथा व्यष्टि सूक्ष्म शरीर छे. हवे बहार जोतां कठण पृथ्वी, द्रवीजळ, उष्ण अग्नि, गतिमान् वायु, पोलाण आकाश, आ समष्टिस्थूल शरीर तथा नीचे प्रमाणे समष्टिसूक्ष्मशरीर छे. समष्टि सूक्ष्म शरीर-पग उपेंद्र, हाथ इन्द्र, शिश्न प्रजापति, गुद यम, मुख अग्नि, वाणी सरस्वति (वेद), घाण अश्वनिकुमार, रसना वरुणदेव, चक्षु सूर्य चंद्र, त्वक् मरुतदेव, श्रवण दिग्पाळ, प्राण वायु, मन चंद्रमा, बुद्धि ब्रह्मा, चित्तनारायण, अहंकार रुद्र" ए अंतःकरण छे. पालक तथा संहारक ए शुभ तथा अशुभ वृत्ति. जेवो खोराक तेवी वृत्ति. आ बधा देवो छे. प्रत्यक्ष अग्नि खोराकने पचावे छे, वायु रसने पाचाडे छे. तथा प्रबळ निर्बळ पण व्यष्टि प्रमाणे छे. एम प्रत्यक्ष रीते जोवामां आवे छे. आ समष्टिथीन आपणुं व्यष्टि शरीर थयेल छे. माटे समष्टि उपर आपणो सर्व आधार छे. तथा सर्व प्राणियोना सुःखदुःखनो आधार पण तेन छे आ
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