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पूजा नहीं है इससे यह सिद्ध होता हे के पूर्वोक्त हिंसाकी रूढी २५०० वर्षके पूर्व कालमें तो नहीं थी किंतु पीछेसे चली हे और उसका मूल कारण वाम मार्ग मतहे. जान्होंने महादेव वगेरे ऋषिओंके नामसे तंत्रग्रंथ बराबर चलायो. इस मतका शंरार्चायेने नाश कियाथा परंतु उसके अंग बाकी रहगयेथे तिस पीछे इस ( पत्रलिखित ) रूपमें इस हिंसाका प्रवेश हुवाहै. उदेपुरके महाराणाओंके इतिहास तवारीख मेवाड-राजप्रशस्ति वगेरे ग्रंथसे तो यह ज्ञात होताहै के राणा राजसिंह ( ओरंगजेब, आलमगीरका शत्रु ) के समय तक राज्योंमें यह रसम नहीं चलीथी जबसे वाममार्गने राजपुतानेमें प्रवेश किया, ओर क्षत्री राजा अपने शत्र मुसलमानों को अपनी हजुरीमें रखने लगे तबसे इस रूढीने राज्योंमें प्रवेश किया ओर उक्त संगसे द्रढात्मक होगइ यह रूढी क्यों चली यह कोइ प्रश्न नहीं है, इन्द्रनाल, सिद्ध साधक, ओर चालाकी करके चुटकले दिखलाकर स्वार्थियोंने एसें स्वरूपमें इसको ढालादया एसा ज्ञात होताहे अथवा नामरदे, कायर, आलसी क्षत्रियोंने सिंहादिके बदले पाडे बकरे मारना बहादूरी मानकर यह रसम द्रढ कर दीइ." रूढीपर चलना या नहीं चलना " इस वातका विद्वान सत्यवक्ता और उत्तम राजा स्वयं फैसला कर सक्ते हे. अर्थात् निकृष्ट रुढीको नष्ट करना और उत्तमका प्रचार करनाही उचितहे. निकृष्ट सठीपर अंध परंपरासे चलना कोइपर फरज नहीं हे किंतु विद्वान सत्य वक्ता ओर योग्य राजपुरुष या लायक राजाको तो यह फरज हे के ऐसी निकृष्ट रूढियोंका प्रचार ही न होने देवे और रिवाज होगया होतो नष्ट भ्रष्ट करनेका जलदी उपाय ले, नहीं तो व्यसनी, इंद्रि आसक्त और स्वार्थी मनुष्य बल पाकर किसी रूढीको द्रढ कर देंगे फेर उसका निकालना कठिन पड जाता हे.
दोहासुन देखे अनुभव करे, बुद्धि युक्ति कर पाय, जैसी जाकी बुद्धिहै, वेसी कहे सुनाय, हंस नीर और छीरमें, कर वियोग पयपीत, सत्या सत्यके शोध में, सत्य लेत मनजीत.
हितेच्छु
स्वा. आत्मानंदनी.
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